



✍️ रिपोर्ट: खबरी न्यूज स्पेशल टीम | 📍उत्तर प्रदेश | जुलाई 2025
“जिस पंचायत में पिछले बार जीत दर्ज की थी, वो अब है ही नहीं… जिस वार्ड से उम्मीद थी, वो अब किसी और ब्लॉक में चला गया।”
यही बेचैनी, यही खलबली… अब गांव-गांव में दिखने लगी है!
उत्तर प्रदेश के सियासी गांव अब एक बार फिर से करवट ले रहे हैं। पंचायत चुनाव 2025 की तस्वीर भले ही अभी धुंधली हो, लेकिन भूगोल और गणित का खेल शुरू हो चुका है – और इस बार यह मुकाबला पहले से कहीं ज़्यादा पेचीदा, ज़्यादा भावुक और ज़्यादा विस्फोटक होने जा रहा है।
📉 504 ग्राम पंचायतें खत्म – पंचायतों की संख्या अब 57695
सबसे बड़ा झटका तो यहीं से शुरू होता है।
पंचायतीराज विभाग ने ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। और इसमें पूरे 504 ग्राम पंचायतें इतिहास बन गईं।
अब ग्राम पंचायतों की कुल संख्या घटकर 57,695 रह गई है।
यानी अगले चुनाव में 500 से ज़्यादा ग्राम प्रधानों की कुर्सी ही नहीं रहेगी, और जिनकी रह भी गई – उनका इलाका, उनकी सीमा, उनका वोटबैंक अब शायद वैसा न हो।
गांव के नक्शे बदले हैं।
रिश्तों के समीकरण बदले हैं।
नेताओं के चेहरे अब बदले जाएंगे।

📌 नया गेम: अब आरक्षण तय होगा – हर चेहरा दांव पर
अब अगली लड़ाई आरक्षण की है।
ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत सभी सीटों पर आरक्षण का खेल चलेगा।
लेकिन मज़ेदार ये है कि अभी तो आरक्षण की प्रक्रिया आधिकारिक रूप से शुरू भी नहीं हुई – और उसके पहले ही गांव-गांव में संभावनाओं की खिचड़ी पकने लगी है।
किसी को लग रहा है कि उसकी सीट महिला आरक्षण में चली जाएगी,
तो कोई डर रहा है कि अबकी बार OBC कोटा में उसका वार्ड चला जाएगा।
📆 सितंबर-अक्टूबर तक आरक्षण की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है।
लेकिन दावेदारों की दौड़ अभी से शुरू हो चुकी है – कोई जातीय जनगणना के आंकड़ों की खोज में है, तो कोई नेता जी के आसपास मुँह लगवाने में।
📊 2011 की जनगणना पर होगा आरक्षण – वही पुराना डेटा, नई लड़ाई
यहाँ सबसे बड़ा विरोधाभास भी है और राजनीति भी।
आरक्षण के लिए 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाएगा – यानी 14 साल पुरानी सामाजिक तस्वीर, लेकिन 2025 की राजनीति।
यूपी के पंचायत चुनाव में यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार यह मुद्दा और ज्यादा तपने वाला है।
क्यों?
👉 OBC आरक्षण के लिए अभी तक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन ही नहीं हुआ है।
👉 गठन के बाद भी सीटों के निर्धारण में 3 महीने से अधिक लग सकते हैं।
यानी: पंचायत चुनाव की तारीख़ नज़दीक – लेकिन कैंडिडेट को नहीं पता कि वो लड़ेगा किस सीट से।

📍आरक्षण के संभावित आंकड़े:
- OBC: 27% सीटें
- SC: 20.69% सीटें
- ST: 0.56% सीटें
और इनमें से भी 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
यानि अब जो OBC महिला हैं – उनकी संभावनाएं तिगुनी हो जाती हैं।
और जो सवर्ण पुरुष हैं – उनके लिए मैदान और भी सीमित।
राजनीति के कई वज़नदार नाम इस बार ‘बिना ज़मीन’ के रह सकते हैं।
🗓️ 18 जुलाई से होगा वार्ड परिसीमन – 10 अगस्त को आएगी अंतिम सूची
अब 18 जुलाई से पंचायतीराज विभाग वार्डों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करेगा।
इसका मतलब ये कि हर पंचायत में अब नई सीमाएं खींची जाएंगी, नए वार्ड बनेंगे, पुराने खत्म होंगे।
और फाइनल लिस्ट 10 अगस्त को जारी होगी।
यानि इस 20 दिन के अंदर गांवों में वो हड़कंप मचेगा, जिसका शोर अभी से शुरू हो गया है।
🌆 शहरी विस्तार बना नया संकट – गांव का हिस्सा अब शहर में
बड़े शहरों का विस्तार हुआ है।
कई पंचायतें अब नगरीय निकाय में शामिल हो गई हैं।
जिन इलाकों में पहले सरपंच का राज चलता था, अब वहां नगर निगम की बत्ती जलने लगी है।
“जहां हम ज़मीन जोतते थे, अब वहां म्युनिसिपल अफसर बैठे हैं।”
कई बुजुर्गों की आंखों में ये टीस अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।
📣 सोशल मीडिया बना पंचायत युद्ध का मैदान
इंस्टाग्राम रील्स से लेकर फेसबुक लाइव तक – गांव के संभावित प्रत्याशियों ने अपना प्रचार शुरू कर दिया है।
🎥 कोई “सड़क बनवाई थी” का वीडियो डाल रहा है
📸 कोई “पिछली बार मेरी जीत ऐसे हुई थी” की फोटो लगा रहा है
📢 कोई “अबकी बार मेरी बारी” के नारों से गांव की गलियों को भर रहा है
लेकिन सबके चेहरों पर एक ही डर – क्या अगली बार मेरी सीट रहेगी भी या नहीं?
🧠 असल जंग अब गांव की नब्ज़ पर है
इस बार का पंचायत चुनाव सिर्फ वोटों की गिनती नहीं होगा, ये:
- जातिगत समीकरण की नई बाज़ी
- महिलाओं के नेतृत्व का नया अध्याय
- और सियासी परिवारों की वंश परंपरा के लिए परीक्षा की घड़ी है।
जिसने जनता से सीधा कनेक्शन रखा – वही टिकेगा।
बाकी सब आरक्षण, परिसीमन और सोशल मीडिया की आँधी में उड़ जाएंगे।
💬 ग्राउंड से आवाज़ें:
🧓 “हमारे गांव की पंचायत अब पास के गांव में जुड़ गई है, अब वहां के लोग हमारे फैसले लेंगे?” – हरिहर सिंह, पूर्व प्रधान
👩 “अगर महिला सीट हो गई तो क्या बेटा लड़ेगा या बहू?” – शकुंतला देवी, वार्ड सदस्य
🧒 “अबकी बार तो reel बनाके ही प्रधान बन जाऊंगा!” – ललन यादव, संभावित प्रत्याशी
📍लास्ट लाइन: पंचायत का रंग अब आरक्षण से नहीं, संघर्ष से तय होगा!
उत्तर प्रदेश के गांव इस बार सिर्फ पुनर्गठित नहीं हो रहे, वे पुनरचना की प्रक्रिया में हैं।
नई पंचायतें, नए चेहरे, और नई उम्मीदें… लेकिन चुनावी ज़मीन पर उतरेगा वही, जो स्थानीय हकीकत को समझेगा – और सोशल मीडिया से लेकर जनमानस तक खुद को साध सकेगा।
10 अगस्त की सूची से पहले हर गली-नुक्कड़ अब एक ‘पंचायत युद्ध’ का मैदान है।
📣 Khabari News आपके गांव तक – आपकी पंचायत की सच्ची तस्वीर।
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