



शहाबगंज की ऋचा गुप्ता BAMS की पढ़ाई कर ग्रामीण बेटियों के लिए बनीं आदर्श
शहाबगंज (चंदौली)।
जब सपना अधूरा रह जाए, तब हिम्मत जवाब देती है। लेकिन चंदौली के शहाबगंज विकासखंड के बड़ौरा गांव की एक बेटी ने यह साबित कर दिया कि सपनों की उड़ान मंज़िल से नहीं, सोच से तय होती है।
हम बात कर रहे हैं ऋचा गुप्ता की, जिन्होंने NEET 2024 परीक्षा में 618 अंक प्राप्त किए, परंतु MBBS की सीट न मिलने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी। बल्कि आयुर्वेद चिकित्सा को ही अपना मिशन बनाकर राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, हंडिया (प्रयागराज) में BAMS की पढ़ाई प्रारंभ कर दी।
🎓 शिक्षा की नींव से लेकर NEET तक की यात्रा
ऋचा की शिक्षा यात्रा गांव से प्रारंभ होकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता तक पहुँची। उन्होंने कक्षा 10 तक की पढ़ाई महर्षि अरविंद शिक्षण संस्थान, कमती कला से पूरी की और कक्षा 12 SRVS इंटर कॉलेज, सिकंदरपुर से उत्तीर्ण किया।
NEET के कठिनतम परीक्षा पैटर्न को मात देते हुए उन्होंने 618 अंक अर्जित किए, जो कि सामान्यत: MBBS की सीट के लिए पर्याप्त माने जाते हैं। लेकिन जनरल कैटेगरी की सीमित सीटों और कट-ऑफ के चलते उन्हें MBBS सीट नहीं मिल सकी।
👨👩👧 पारिवारिक पृष्ठभूमि — सादगी में साधना
ऋचा के पिता कन्हैया लाल गुप्ता, प्राथमिक विद्यालय बराव, शहाबगंज में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी माता श्रीमती रेनू गुप्ता, एक सुलझी हुई गृहिणी हैं, जिन्होंने हमेशा अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी।
तीन कमरों के साधारण मकान में पली-बढ़ी ऋचा की शिक्षा, ट्यूशन और कोचिंग की व्यवस्था पिता ने सीमित आय में की। वे बताते हैं:
“हर महीने अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा कोचिंग और किताबों में लगाना आसान नहीं था, लेकिन बेटी के जज़्बे के सामने हर मुश्किल छोटी लगी।”

📉 NEET के द्वारा MBBS की उम्मीद टूटी, लेकिन संकल्प नहीं
NEET परिणाम आने के बाद जब MBBS की सीट कन्फर्म नहीं हो सकी, तो पूरे परिवार में निराशा व्याप्त थी। लेकिन ऋचा ने खुद को टूटने नहीं दिया। उन्होंने निर्णय लिया कि आयुर्वेद को ही अपनी चिकित्सा सेवा का मार्ग बनाकर आगे बढ़ेंगी।
अब वह हंडिया स्थित राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, प्रयागराज में BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine & Surgery) की छात्रा हैं।
💬 ऋचा का आत्मविश्वास:NEET के द्वारा “MBBS नहीं मिला, लेकिन आयुर्वेद को बना लिया धर्म”
ऋचा ने Khabari News से बात करते हुए कहा:
“जब MBBS नहीं मिला तो कुछ पल के लिए अंदर से टूटी थी, लेकिन मैंने खुद से वादा किया कि जिस राह पर जाऊंगी, वहाँ सर्वश्रेष्ठ बनकर दिखाऊंगी। आयुर्वेदिक चिकित्सा को अब मैं सेवा और साधना दोनों मानती हूं।”
उनका कहना है कि उन्हें गांवों की सेवा करनी है, खासकर उन महिलाओं और ग्रामीण मरीजों की, जो एलोपैथ से डरते हैं या इलाज नहीं करवा पाते।
🌿 आयुर्वेद को नया मुकाम दिलाने का सपना
ऋचा का मानना है कि आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है और इसका विज्ञान बहुत गहरा है। वे चाहती हैं कि आयुर्वेद को आधुनिक मेडिकल रिसर्च के साथ जोड़कर लोगों को इसका लाभ दिलाया जाए।
“हमारे गाँवों में आज भी बहुत सी बीमारियाँ ऐसी हैं, जिन्हें आयुर्वेदिक दवाओं और पंचकर्म पद्धति से ठीक किया जा सकता है।” — ऋचा
🏫 गांव और विद्यालय में गर्व का माहौल
ऋचा की सफलता पर प्राथमिक विद्यालय बराव सहित आसपास के शिक्षक व ग्रामीणों में गर्व की भावना है। उनके पिता के सहकर्मी बताते हैं:
“ऋचा जैसी बेटियाँ शिक्षा व्यवस्था में नया विश्वास भरती हैं। सीमित संसाधनों में भी अगर इच्छा शक्ति प्रबल हो, तो कुछ भी असंभव नहीं।”
🗣️ संपादकीय टिप्पणी — K.C. Shrivastava (Adv.)
“ऋचा गुप्ता जैसी बेटियाँ समाज की रीढ़ हैं।NEET के द्वारा MBBS की सीट न मिलने के बावजूद उन्होंने जीवन की दिशा नहीं खोई, बल्कि वैकल्पिक राह चुनकर सफलता की नई परिभाषा गढ़ी। यह खबर सिर्फ एक छात्रा की नहीं, लाखों ग्रामीण युवाओं की प्रेरणा है।”
📣 प्रशासन और सरकार से आग्रह
Khabari News चंदौली जिला प्रशासन, राज्य शिक्षा एवं स्वास्थ्य मंत्रालय से आग्रह करता है कि ऋचा गुप्ता जैसी छात्राओं को विशेष छात्रवृत्ति, शोध सहायता और आयुर्वेद के क्षेत्र में रिसर्च फंडिंग प्रदान की जाए ताकि वे देश के लिए और भी उपयोगी सिद्ध हो सकें।
🔚 निष्कर्ष
ऋचा गुप्ता की कहानी यह बताती है कि सपनों को सिर्फ एक रास्ते से नहीं देखा जाता। यदि मंज़िल साफ हो, तो राह खुद-ब-खुद बन जाती है।
यह खबर उन हजारों छात्रों को प्रेरणा दे सकती है जो NEET, JEE या अन्य परीक्षाओं में सीट न मिलने पर अपना आत्मविश्वास खो बैठते हैं।


