अनामिका जैन अंबर ने ओज, श्रृंगार, भक्ति और वेदना से भिगो दिया पूरा पंडाल, दर्शक बार-बार खड़े होकर करते रहे तालियां



खबरी न्यूज नेशनल न्यूज नेटवर्क
साहित्य सिर्फ शब्द नहीं होता—वह संस्कृति का स्वर, समाज की धड़कन, और मन की अभिव्यक्ति होता है।
और जब शब्दों का यह महासंगम राष्ट्रीय प्रेस दिवस जैसे पवित्र अवसर पर उमड़े,
तो दृश्य किसी मेले, किसी उत्सव, किसी महाकुंभ से कम नहीं होता।
चंदौली प्रेस क्लब द्वारा आयोजित विराट कवि सम्मेलन रविवार की उस संध्या को हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज कर गया—
जहाँ शब्दों ने शोर को हराया, भावनाओं ने मन को जीता, और कविता ने समाज को दहला दिया।
⭐ मंच पर दीप जला और जाग उठा चंदौली का सांस्कृतिक गौरव
ठीक शाम 5 बजे, अलीनगर के नक्षत्र लॉन में दीप जला,
मुगलसराय विधायक रमेश जायसवाल ने मां सरस्वती के तैलचित्र पर माल्यार्पण किया
और उपस्थित जनसमूह ने महसूस किया कि वह सिर्फ कार्यक्रम नहीं—एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी बनने वाला है।
दीप की लौ जैसे-जैसे फड़फड़ाती थी, पंडाल में बैठी भीड़ की उम्मीदें और ऊँची उठती थीं।
कविता की बारिश होने वाली थी… और जनता मन से तैयार थी।
⭐ अनामिका अंबर—नाम ही काफी! पहली सरस्वती वंदना ने हिला दिया माहौल
दीप प्रज्वलन के बाद मंच पर कदम रखा—
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवयित्री अनामिका जैन अंबर ने।
उनकी आवाज़ जैसे ही माइक से निकली, हवा का तापमान बदल गया।
बीच पंडाल में बैठे एक 70 वर्षीय साहित्य प्रेमी की आंखें भर आईं।
बगल में बैठे एक युवा पत्रकार ने मोबाइल का कैमरा ऑन कर दिया—
क्योंकि जो हो रहा था, वह सिर्फ सुना नहीं जाना चाहिए… संरक्षित भी होना चाहिए।
अंबर जी ने जब अपनी सरस्वती वंदना की पंक्ति—
“ज़िंदगी जब भी ख़्वाब देती है, सबब की एक किताब देती है…”
गाई,
तो पंडाल में सिर्फ ताली नहीं—धड़कनों का स्वर गूंज उठा।
उस क्षण कोई दर्शक नहीं रहा…
हर कोई भावनाओं का यात्री बन गया था।

⭐ प्रेस दिवस पर कविता—क्योंकि पत्रकारिता सिर्फ खबर नहीं, संस्कृति की रक्षा भी है
आज जब समाज में शोर बहुत और सुनना कम हो चुका है,
ऐसे में प्रेस दिवस पर कविता का आयोजन एक संदेश था—
कि पत्रकारिता सिर्फ सवाल नहीं करती,
वह समाज की आत्मा को भी जगाती है।
कवियों का मंच प्रेस दिवस के अवसर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि
कलम चाहे पत्रकार की हो या कवि की—दोनों समाज के प्रहरी हैं।
⭐ दिल्ली से आए गीतकार कल्याण सिंह विशाल—युवाओं में बहा दिया जोश
अगले क्रम में दिल्ली से आए युवा गीतकार कल्याण सिंह विशाल ने
अपने सधे हुए शब्दों और लय से युवा दर्शकों को झकझोर दिया।
उनकी चर्चित पंक्ति—
“लिफाफा बंद है और बंद है पहचान चिट्ठी में,
यही है आरज़ू मेरी यही अरमान चिट्ठी में…”
जैसे ही गूंजी,
लोगों की गर्दनें स्वतः ही ताल के साथ झूमने लगीं।
यह वह पल था जब मंच और दर्शक एक हो गए—
कवि बोल रहा था, पर दिल-दिल से संवाद हो रहा था।

⭐ हास्य, व्यंग्य और ठहाकों का तूफ़ान—पारीक और डॉ. प्रतीक की जुड़वां आंधी
राजस्थान के भीलवाड़ा से आए हास्य कवि दीपक पारीक
और मुरादनगर के डॉ. प्रतीक गुप्ता
ने मंच को जो रंग दिया, वह अविस्मरणीय रहा।
डॉ. प्रतीक की पंक्ति—
“पैसों से मोहब्बत जताने लगे हैं लोग,
मजनू से बड़े खुद को बताने लगे हैं लोग…”
पर लोगों ने सिर्फ तालियाँ नहीं बजाईं,
ज़ोरदार ठहाकों से पंडाल हिल गया।
हास्य कविता की यही ताकत होती है—
वह हंसाते हुए भी समाज को कटाक्ष का आईना दिखा देती है।
⭐ स्थानीय कवि डॉ. सुरेश अकेला—ओज, प्रेरणा और बुलंद संदेश
चंदौली की मिट्टी में साहित्य की गूंज हमेशा रही है।
इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए
स्थानीय कवि डॉ. सुरेश अकेला ने अपनी रचना—
“खुद अपनी उलझनों का हल तुझे बनना जरूरी है,
ज़माने में नई हलचल तुझे बनना जरूरी है…”
से वह प्रेरणा दी जिसकी आज के युग में सबसे अधिक जरूरत है।
उनकी आवाज़ ने कई युवाओं के दिलों पर दस्तक दी—
जैसे कोई कह रहा हो—
“उठो, बढ़ो, बदलो!”
⭐ और फिर—मंच पर आया वह क्षण, जिसने कार्यक्रम को इतिहास बना दिया
अंतिम सत्र शुरू होते ही पंडाल के कोने-कोने में एक ही नाम गूंज रहा था—
“अनामिका अंबर फिर आ रही हैं!”
लोग खड़े होने लगे…
मोबाइल की फ्लैशलाइटें जगमगाने लगीं…
बुजुर्गों के चेहरे पर गर्व…
युवाओं के चेहरे पर दीवानगी…
और बच्चों के चेहरों पर आश्चर्य।
कविता का ‘कुंभ’ अब अपने चरम पर था।
⭐ अंबर जी की ओजपूर्ण प्रस्तुति—पंडाल ‘वाह-वाह’ से थर्राया
उन्होंने जब वीर रस की पंक्तियाँ सुनाईं—
आंखें चौड़ी, आवाज बुलंद, लय कड़क—
तो लगा मानो मंच पर कवि नहीं,
शब्दों की सेनानायक खड़ी हो!
जब वह भक्ति रस में उतरतीं—
तो मन में शांति उतरती।
श्रृंगार में उतरतीं—
तो पूरा पंडाल भावों से भर जाता।
और फिर उन्होंने अपनी वही अनंत-प्रसिद्ध पंक्ति दोहराई—
“ज़िंदगी जब भी ख़्वाब देती है, सबब की एक किताब देती है…”
यह पंक्ति दोहरते ही
पंडाल में ऐसा लगा कि हवा भी तालियाँ बजा रही हो!
हर तरफ़ “वाह! वाह!”, “once more!”, “जय हो!”
की आवाज़ें छा गईं।
यह सिर्फ कविता नहीं थी—
यह एक सामूहिक भावनात्मक विस्फोट था।
⭐ क्यों यह कवि सम्मेलन चंदौली के सांस्कृतिक इतिहास में मील का पत्थर बन गया?
क्योंकि—
✓ यह सिर्फ कार्यक्रम नहीं—साहित्य का पुनर्जन्म था।
✓ यहाँ कविता ने समाज को जोड़ा, विभाजन को नहीं।
✓ यहाँ कवियों ने प्रेस दिवस पर कलम की शक्ति को याद दिलाया।
✓ यहाँ भीड़ सिर्फ दर्शक नहीं—भावनाओं के यात्री बनी।
✓ और सबसे बड़ा कारण—
शब्दों ने यहां दिलों पर राज किया।
⭐ आयोजकों की समर्पित टीम—जिन्होंने रात-दिन एक कर दिया
कवि सम्मेलन को सफल बनाने में जिन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया—
अमरेंद्र पाण्डेय, बृजेश कुमार, राजीव जायसवाल, पवन तिवारी,
आशाराम यादव, सरदार महेंद्र सिंह, आनंद सिंह, कमलेश तिवारी,
के.सी. श्रीवास्तव (एडवोकेट), सुधांशु जायसवाल, सरदार गौतम सिंह, अजय कुमार शिवजी,संदीप कुमार निगम, कृष्ण कांत गुप्ता,
करूणापति तिवारी, कृष्णा गुप्ता, संजीव पाठक, सूर्य प्रकाश सिंह,
अमित गुप्ता, तलवार सिंह, मनीष द्विवेदी, मनोज उपाध्याय,
फैयाज अंसारी, अनिल कुमार, अजित जायसवाल, देवेश गुप्ता,
कार्तिकेय पाण्डेय सहित अन्य सहयोगियों ने
जिस एकजुटता, समर्पण और संस्कृति के प्रति प्रेम का परिचय दिया—
वह अद्वितीय है।
⭐ समापन—जहाँ कविता रुकी नहीं… दिलों में बस गई
करीब तीन घंटे तक चले इस विराट साहित्यिक उत्सव के बाद
जब लोग बाहर निकले,
तो कोई चुप नहीं था।
हर कोई अपने अंदर कविता का कुछ न कुछ ले जा रहा था—
किसी ने प्रेरणा ली…
किसी ने उत्साह…
किसी ने हँसी…
तो किसी ने आँसू…
पर हर किसी ने गौरव जरूर महसूस किया—
कि वह चंदौली की उस धरती का निवासी है
जहाँ शब्दों की महिमा आज भी जीवित है।
⭐ Khabari News का निष्कर्ष
यह सिर्फ कवि सम्मेलन नहीं—एक सांस्कृतिक क्रांति थी।
अनामिका जैन अंबर का तेज,
युवा कवियों की ऊर्जा,
स्थानीय प्रतिभाओं का ओज,
और प्रेस दिवस का पवित्र अवसर—
सबने मिलकर चंदौली को एक ऐसी रात दी
जो सालों तक याद रखी जाएगी।



