


✍️ रिपोर्ट: एडिटर-इन-चीफ के.सी. श्रीवास्तव (एडवोकेट)
डर और सन्नाटे से भरी रात, जब प्लेटफॉर्म नं. 6 पर सामने आया दर्दनाक सच…
चंदौली के डीडीयू नगर रेलवे स्टेशन पर गुरुवार की शाम का वक्त। स्टेशन की चहल-पहल के बीच अचानक प्लेटफॉर्म संख्या 6 पर खड़ी सीमांचल एक्सप्रेस (गाड़ी संख्या 12487) के जनरल कोच से निकलीं मासूम निगाहें, डरे-सहमे चेहरे और कांपते होंठ। यह दृश्य सामान्य नहीं था।
आरपीएफ प्रभारी निरीक्षक प्रदीप कुमार रावत और उनकी टीम के अनुभव ने तुरंत संकेत पकड़ा—“कुछ गड़बड़ है।” और यहीं से शुरू हुई एक ऐसी जाँच, जिसने बाल मजदूरी के अंधेरे खेल का पर्दाफाश कर दिया।



जाँच में सामने आया चौंकाने वाला सच
जैसे ही आरपीएफ टीम कोच में दाखिल हुई, छह मासूम बच्चे सहमे हुए बैठे मिले। उनके साथ एक व्यक्ति संदिग्ध हालात में मौजूद था। पूछताछ में सामने आया कि इन बच्चों को दिल्ली की एक खिलौना कंपनी में बाल मजदूरी कराने ले जाया जा रहा था।
वह शख्स था – मोहम्मद मोसब्बिर आलम, उम्र 30 वर्ष, निवासी अररिया, बिहार।
उसने कबूल किया कि बच्चों को फैक्ट्री में 12-12 घंटे काम करवाने के लिए दिल्ली ले जाया जा रहा था। बदले में उन्हें ₹7000-₹8000 महीना देने का लालच दिया गया था।
इन मासूमों का दर्द – भूख और मजदूरी के बीच बंधी जिंदगी
👉 बचाए गए बच्चों के नाम:
- मोहम्मद आसिफ आलम (13)
- मोहम्मद परवेज (14)
- शाहनवाज (17)
- शाहबाज (14)
- ग़ालिब (14)
- मोहम्मद राशिद (14)
सभी बच्चे अररिया (बिहार) के गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं।
उन्होंने कांपती आवाज़ में बताया –
“हमें कहा गया था कि दिल्ली में काम आसान होगा। खिलौनों की पैकिंग करनी होगी। लेकिन रोज़ाना 12 घंटे काम, बिना छुट्टी और मामूली पैसे… यही हमारी ज़िंदगी बनने वाली थी।”
‘बचपन बचाओ आंदोलन’ और चाइल्ड हेल्प डेस्क की भूमिका
इस ऑपरेशन में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की कार्यकर्ता चंदा गुप्ता और चाइल्ड हेल्प डेस्क की टीम भी मौजूद थी।
उनकी संवेदनशीलता और त्वरित एक्शन ने बच्चों को तुरंत सुरक्षा में लिया।
आरोपी मोसब्बिर आलम को कोतवाली मुगलसराय पुलिस के हवाले कर दिया गया है और उसके खिलाफ बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, जेजे एक्ट और अन्य संबंधित धाराओं में केस दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
ऑपरेशन में शामिल रहे जांबाज़
- उप निरीक्षक विजय बहादुर राम
- आरक्षी दीपक सिंह, बृजेश सिंह, संतोष त्रिपाठी, अशोक यादव
- सीआईबी के विनोद यादव
- सामाजिक कार्यकर्ता चंदा गुप्ता, सुजीत कुमार
इन सभी की संयुक्त कार्रवाई ने 6 मासूमों का भविष्य अंधकार से बाहर खींच लिया।

बाल मजदूरी – सिर्फ अपराध नहीं, समाज पर कलंक
यह घटना सिर्फ़ पुलिस की कार्रवाई नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए आईना है। सोचिए—
👉 13-14 साल के बच्चे, जिन्हें स्कूल की किताबें थामनी चाहिए थीं, वे दिल्ली की अंधेरी फैक्ट्री में खिलौने बनाने के लिए मजबूर किए जा रहे थे।
👉 मासूम हाथ, जिन्हें खेलना चाहिए था, उन्हें लोहे की कैंची और पैकिंग मशीन के नीचे झोंक दिया जाता।
👉 बचपन को पैसों के नाम पर 7000-8000 रुपये में बेच देने का यह धंधा, आखिर कब तक चलेगा?
Khabari News की पड़ताल – बाल मजदूरी का अंधेरा नेटवर्क
- बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से गरीब बच्चों को बहला-फुसलाकर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की फैक्ट्रियों में भेजा जाता है।
- एजेंट परिवारों को झूठे वादे करते हैं – “बच्चा महीने में 10-12 हजार कमाएगा।”
- असलियत यह होती है कि बच्चों से 12-14 घंटे काम लिया जाता है, बमुश्किल 6-7 हजार मिलते हैं, और हालात नारकीय होते हैं।
- कई बार ये बच्चे मानव तस्करी, अवैध फैक्ट्री हादसों, और यौन शोषण का भी शिकार हो जाते हैं।
सोशल मीडिया पर गूंजा मामला
जैसे ही यह खबर फैली, सोशल मीडिया पर आक्रोश उमड़ पड़ा।
लोगों ने लिखा –
🔴 “खिलौनों की फैक्ट्री में बच्चों का बचपन कैद करना सबसे बड़ा अपराध है।”
🔴 “आरपीएफ और चाइल्ड हेल्प डेस्क की टीम बधाई की पात्र है।”
🔴 “अब समय है कि सरकार सख्ती से बाल मजदूरी नेटवर्क को तोड़े।”
सस्पेंस और सवाल
👉 अगर ट्रेन की जांच नहीं हुई होती, तो ये बच्चे कहां पहुंचते?
👉 क्या इनके परिवार को कभी पता चलता कि बच्चों की जिंदगी फैक्ट्री की चारदीवारी में कैद कर दी गई है?
👉 कितने और बच्चे रोज़ इसी तरह गुमनाम अंधेरे में खो जाते हैं, जिनकी कोई खोज-खबर नहीं होती?




Khabari News का आह्वान
एडिटर-इन-चीफ के.सी. श्रीवास्तव (एडवोकेट) ने कहा –
“यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है। जब तक हम सब मिलकर बाल मजदूरी और मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ेंगे, तब तक ये मासूम इसी तरह बिकते रहेंगे। प्रशासन को चाहिए कि ऐसे नेटवर्क की जड़ों तक जाकर सख्त कार्रवाई करे।”
निष्कर्ष – मासूम बचपन की जीत
डीडीयू रेलवे स्टेशन की यह घटना बताती है कि सतर्कता, संवेदनशीलता और सख्त कार्रवाई से बाल मजदूरी जैसे अपराध पर रोक लगाई जा सकती है।
आज 6 मासूम बच्चों की मुस्कान लौट आई है, लेकिन देशभर में हजारों-लाखों बच्चे अब भी फैक्ट्रियों, ढाबों, ईंट-भट्टों और घरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।
👉 सवाल यही है – क्या हम मिलकर उनका बचपन लौटा पाएंगे?
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