
By K.C. Shrivastava (Advocate), Editor-in-Chief खबरी न्यूज
चकिया, चंदौली:
सूर्यास्त और सूर्योदय की पूजा में छिपी श्रद्धा, जल, मिट्टी और पौधों के प्रति निस्वार्थ भाव – यही छठ महापर्व का मूल सार है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु संकट, जल प्रदूषण और पारिस्थितिक असंतुलन जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है, तब यह परंपरा सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बनकर सामने आती है।
हमारी टीम ने चकिया और आसपास के गांवों में जाकर छठ की तैयारी, व्रती माताओं की मेहनत और प्रशासनिक पहल का विस्तृत कवरेज तैयार किया। इस रिपोर्ट को पढ़ते समय आपको लगेगा कि आप घाटों पर खड़े हैं, पानी की झिलमिल धारा देख रहे हैं और माताओं की श्रद्धा को महसूस कर रहे हैं।
छठ और पर्यावरण – परंपरा का विज्ञान
हमारे संवाददाता ने डॉ. परशुराम सिंह, प्रतिष्ठित पर्यावरणविद और लाइफटाइम ग्रीन गार्डियन अवार्ड विजेता से बातचीत की। उन्होंने बताया,
“छठ पर्व और पर्यावरण का सम्बन्ध आनुवंशिक है। यह सिर्फ सूर्य और जल की आराधना नहीं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति कृतज्ञता और संतुलन की शिक्षा देता है। जब व्रती महिलाएँ नदी, पोखर या तालाब में सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तो यह न केवल धार्मिक कृत्य है, बल्कि जल संरक्षण का प्रतीक भी है। स्थानीय पौधों का उपयोग व्रत वेदी सजाने में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाता है।”
डॉ. सिंह ने यह भी जोर दिया कि छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संतुलन की सीख है।
प्रधानमंत्री मोदी का पर्यावरणीय दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कई बार छठ को पर्यावरणीय चेतना के प्रतीक के रूप में देखा है। उनके अनुसार,
“हमारी परंपराएं सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि नैतिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का भी प्रतीक हैं। छठ पर्व जल, मिट्टी और सूर्य की पूजा के माध्यम से हमें प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना सिखाता है।”
हमारे संवाददाता ने स्थानीय स्तर पर यह पता लगाने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री के पर्यावरणीय दृष्टिकोण का प्रभाव कितनी गहराई तक महसूस किया जा रहा है। परिणाम उत्साहजनक था: माताएँ, युवा और पंचायत के लोग सभी इस संदेश को आत्मसात कर रहे हैं।



चकिया में छठ की तैयारी – श्रद्धा और चेतना का संगम
सुल्तानपुर गांव में घाटों का दौरा करते समय स्थिति ने हमें सोचने पर मजबूर किया। एक ओर व्रती महिलाएँ विधि-विधान से पूजा की तैयारी में जुटी थीं, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक लापरवाही के कारण पोखरे और तालाब अब भी गंदे थे।
स्थानीय निवासी रामकिशोर यादव ने बताया,
“हम हर साल छठ की तैयारी में जुटते हैं। परंतु इस बार भी जिला प्रशासन ने पोखरों की सफाई नहीं की। हमें अपने प्रयासों से घाटों को साफ करना पड़ा। यह देख कर लगता है कि धार्मिक आस्था और पर्यावरणीय चेतना दोनों ही हमारी जिम्मेदारी हैं।”
वहीं प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मालवीय ने कहा,
“हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि आगामी वर्षों में छठ पर्व पर पर्यावरणीय प्रबंधन बेहतर हो। जल शुद्धिकरण और पौधारोपण जैसी पहलें हमारी प्राथमिकता हैं।”
इमोशनल कहानी – व्रती माताओं की संघर्षपूर्ण आस्था
छठ पर्व सिर्फ पूजा का नाम नहीं है। यह निस्वार्थ सेवा, आत्मिक शक्ति और प्राकृतिक संसाधनों की कृतज्ञता का प्रतीक है।
हमने माता गीता देवी से बातचीत की, जिन्होंने अपने छोटे बच्चों के साथ घाट की सफाई में योगदान दिया। उनकी आंखों में श्रद्धा और चिंता दोनों झलक रहे थे। उन्होंने कहा,
“हमारा व्रत सिर्फ भगवान सूर्य के लिए नहीं, बल्कि जल, मिट्टी और पौधों की सुरक्षा के लिए भी है। यदि हम प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे, तो हमारा भविष्य अंधकारमय होगा।”
इस सस्पेंस-फुल क्षण में, माताओं की मेहनत और प्रतिबद्धता ने हम सभी को झकझोर दिया। छठ की सूर्यास्त व्रत में जब सूर्य ने लालिमा बिखेरी, माताएँ अर्घ्य देती हुई, उनका दृश्य सीधे दिल को छू गया।
वैश्विक संदेश – छठ और पर्यावरणीय चेतना
आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के खिलाफ जूझ रही है, छठ पर्व हमें याद दिलाता है कि संतुलन और संरक्षण हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं।
डॉ. परशुराम सिंह ने कहा,
“छठ की परंपरा वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय चेतना फैलाने का संदेश देती है। यह सिर्फ भारत का पर्व नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए सीख है। यदि हम इस परंपरा को पूरी निष्ठा से निभाएं, तो जल संरक्षण, मिट्टी की रक्षा और हरियाली को बढ़ावा मिलेगा।”
प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी यही संदेश बार-बार दोहराया है कि हमारी परंपराएं केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नैतिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का प्रतीक हैं।

घाटों की कहानी – संघर्ष और श्रद्धा का जीवंत मंजर
चकिया घाटों पर हमने देखा कि माताएँ अपने हाथों से मिट्टी और पौधों को सजाकर वेदी तैयार कर रही थीं। कुछ व्रती महिलाएँ सुबह से शाम तक पानी साफ करती रहीं, जबकि युवा स्वयंसेवक पौधारोपण और सफाई में मदद कर रहे थे।
स्थानीय युवाओं ने बताया,
“हमारी जिम्मेदारी सिर्फ पूजा तक नहीं, बल्कि प्रकृति की सुरक्षा तक है। यह छठ हमें बताता है कि श्रद्धा और पर्यावरण दो अलग चीज़ें नहीं हैं। अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो ही हमारी आस्था पूरी होगी।”
इस दृश्य ने हमारी टीम को भी भावुक कर दिया। कैमरे में कैद हर पल में सस्पेंस और श्रद्धा दोनों झलक रही थीं।
Khabari News की नजर – Editor-in-Chief का एंगल
एडिटर इन चीफ एडवोकेट के.सी. श्रीवास्तव ने कहा,
“हमारा उद्देश्य सिर्फ खबर देना नहीं है। हम यह दिखाना चाहते हैं कि छठ महापर्व सिर्फ पूजा का पर्व नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का माध्यम भी है। हमारी टीम ने घाटों, व्रती माताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का दृश्य कैद किया है। यह पहली बार है जब एक सोशल मीडिया और वेव पोर्टल पर छठ को पूरी तरह इमोशनल, सस्पेंस-फुल और पर्यावरणीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया गया है।”
उन्होंने आगे कहा,
“हम चाहते हैं कि हमारे पाठक सिर्फ देखे नहीं, बल्कि महसूस करें – छठ में छिपी सीख, संघर्ष और श्रद्धा को। यह सिर्फ त्योहार नहीं, जीवन की शिक्षा है।”
छठ और प्रकृति – संदेश, श्रद्धा और जिम्मेदारी
छठ पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी आस्था और प्रकृति की सुरक्षा एक-दूसरे से जुड़े हैं।
- जल – जीवन की धारा
- सूर्य – ऊर्जा का स्रोत
- मिट्टी और पौधे – जीवन का आधार
यदि हम इनको संरक्षित करेंगे, तो हमारी परंपराएं और प्राकृतिक संसाधन दोनों सुरक्षित रहेंगे।
छठ का संदेश केवल पूजा तक सीमित नहीं है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम जल, मिट्टी और वनस्पति का संरक्षण करें, अपने बच्चों को पर्यावरणीय जिम्मेदारी सिखाएँ और समाज में जागरूकता फैलाएँ।
खास हाइलाइट्स – वायरल और सोशल मीडिया फ्रेंडली
- 🌊 Pokhar पर गंदगी के बावजूद माताओं ने दिया अर्घ्य – श्रद्धा और संघर्ष की जीवंत कहानी
- 🌱 डॉ. परशुराम सिंह बोले – छठ का व्रत है पर्यावरण संरक्षण का सबसे प्राचीन तरीका
- 🌅 सूर्यास्त की लालिमा में माताओं की श्रद्धा – घाटों पर बना वायरल मंजर
- 🏞️ प्रधानमंत्री मोदी ने कहा – छठ केवल पूजा नहीं, प्रकृति का सम्मान है
- 💧 जल, सूर्य, मिट्टी और पौधों के लिए माताओं की निस्वार्थ आस्था – देखिए फोटो और वीडियो
- 👩👧👦 माता गीता देवी और अन्य व्रती माताएँ – भविष्य और पर्यावरण के लिए समर्पित
श्रद्धा, संरक्षण और चेतना का संगम
छठ महापर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी और जीवन की सीख भी हैं।
इडिटर इन चीफ एडवोकेट के सी श्रीवास्तव ने कहा कि Khabari News इस बात पर गर्व करता है कि उसने छठ महापर्व को सिर्फ पूजा का पर्व नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संदेश, श्रद्धा और संघर्ष का प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया।


