
डॉ. विनय प्रकाश तिवारी
खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क चंदौली।
“सूरज डूबता है तो भी हम पूजते हैं, उगता है तो भी।
छठ सिर्फ त्योहार नहीं, यह वो शक्ति है जो हर साल लाखों लोगों को उनके गाँव, उनकी मिट्टी और उनकी माँ की गोद में लौटा लाती है।”
🚉 1500 ट्रेनें, लाखों कदम, और एक ही दिशा – घर!
हर साल की तरह इस बार भी छठ के मौसम ने भारत की परिवहन व्यवस्था की सीमाएं तोड़ दीं।
रेलवे ने रिकॉर्ड 1500 स्पेशल ट्रेनें चलाईं, ताकि प्रवासी अपनी मातृभूमि लौट सकें।
सूरत, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, दिल्ली — हर महानगर के स्टेशनों पर 1 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी कतारें थीं।
सूरत स्टेशन पर मजदूरों, कामगारों और परिवारों की ऐसी भीड़ थी कि प्रशासन को ट्रैफिक डायवर्जन करना पड़ा।
लोग कहते हैं — “भाई, नौकरी बाद में… छठ पहले।”
इन पटरियों पर सिर्फ यात्रियों की भीड़ नहीं, बल्कि भावनाओं की नदी बहती है।
हर डिब्बे में, हर सीट पर, एक ही उम्मीद बैठी होती है —
“इस बार घाट पर माँ के साथ अर्घ्य दूँगा।”



🏙️ खाली पड़े मेट्रो शहर — क्योंकि दिल गाँव में है
दिल्ली की लोकल ट्रेनें, मुंबई की लोकल, बेंगलुरु का ट्रैफिक — सब अचानक हल्का हो जाता है।
ऑफिसों में कुर्सियाँ खाली, फैक्ट्रियों में कामगार कम, PG रूमों में ताले।
पूरे साल जो लोग ‘भागते शहर’ के पहियों पर दौड़ते हैं, छठ पर वही लोग मिट्टी की खुशबू, नदी की ठंडक और माँ की छाँव के लिए निकल पड़ते हैं।
छठ सिर्फ घर लौटने का बहाना नहीं — यह घर की पुकार है।
यह वह त्योहार है जो बताता है कि भारत की आत्मा अब भी गाँवों में बसती है।
छठ सिर्फ पूजा नहीं — एक जीवंत आर्थिक क्रांति भी है!
यह त्योहार भावनाओं जितना ही आर्थिक शक्ति का प्रतीक भी है।
हर साल सिर्फ बिहार, पूर्वी यूपी और झारखंड में 9000 से 10,000 करोड़ रुपये का आर्थिक लेन-देन होता है।
छठ के चार दिनों में जितनी रौनक, लेन-देन और रोजगार उत्पन्न होता है, उतना शायद किसी सरकारी स्कीम से भी नहीं होता।
1️⃣ फल और अर्घ्य सामग्री – सबसे बड़ा कारोबार
छठ का सबसे पवित्र अर्घ्य — फल और प्रकृति की देन।
बनारस से लेकर दरभंगा, मुजफ्फरपुर से पटना तक फल मंडियों में रात-दिन कारोबार चलता है।
- केला, नारियल, नींबू, सेब, सिंघाड़ा, मौसमी, गन्ना — हर फल का भाव दोगुना-तीन गुना।
- पटना, आरा, मुजफ्फरपुर में अकेले 2500 से 3000 करोड़ रुपये के फल बिकते हैं।
- पूरे बिहार में यह आंकड़ा 6000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है।
यह त्योहार सिर्फ सूर्य की नहीं, किसानों की मेहनत की भी पूजा है।
2️⃣ मिट्टी के दीये, सुप, दौरा और बांस की टोकरी – कारीगरों की रोशनी
छपरा, बलिया, सीवान, गाजीपुर और गोरखपुर के कारीगर पूरे साल इस दिन की तैयारी करते हैं।
उनके बनाए सूप, दौरा, टोकरी, मिट्टी के दीये और कलश देशभर के बाजारों में पहुंचते हैं।
छठ पर इन उत्पादों का कारोबार 500–700 करोड़ रुपये का होता है।
इन कारीगरों के लिए छठ सिर्फ धंधा नहीं, सम्मान और परंपरा का दिन है।
हर दीये की लौ में उनकी मेहनत और उम्मीद जलती है।

🚗 3️⃣ सफर से चलती अर्थव्यवस्था – ट्रेन, बस, टैक्सी, ऑटो
छठ पर चलती हर बस, हर ट्रेन, हर टैक्सी सिर्फ सवारी नहीं, संवेदना लेकर चलती है।
रेलवे का अकेले का राजस्व इस अवधि में सैकड़ों करोड़ तक बढ़ जाता है।
- बस ऑपरेटरों की कमाई दोगुनी।
- ई-रिक्शा और ऑटो वालों की चांदी।
- सूरत, अहमदाबाद, मुंबई से घर जाने वाले कामगारों की टिकटें 2 गुना दाम में बिकती हैं।
यानी छठ सिर्फ पूजा नहीं, एक चलता-फिरता रोजगार महोत्सव है।
🧁 4️⃣ ठेकुआ, गुड़, घी और कपड़ों की खुशबू
छठ का असली स्वाद — ठेकुआ।
हर घर में बनता है, हर गली में इसकी खुशबू फैली होती है।
सिर्फ मिठाई उद्योग में ही 1000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है।
घी, गुड़, सूजी, नारियल, खजूर — हर चीज़ की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है।
वहीं बाजारों में महिलाओं की साड़ियाँ, बच्चों के कपड़े, सिंदूर, चूड़ी और पूजा सामग्री का कारोबार 1500–2000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाता है।
छठ महिलाओं की श्रद्धा के साथ-साथ उनकी आर्थिक भागीदारी का प्रतीक भी बन चुका है।
🌾 तो लोग इतनी दूर से क्यों लौटते हैं?
क्यों मुंबई की चमक छोड़कर कोई सीवान लौटता है?
क्यों दिल्ली के दफ्तरों से लोग छुट्टी लेकर गाजीपुर की मिट्टी सूंघने जाते हैं?
क्योंकि छठ सिर्फ पूजा नहीं — पहचान है।
यह माँ के संस्कार, परिवार के मिलन और अपनी जड़ों से जुड़ने का पर्व है।
“जो पूरे साल मेट्रो पकड़ते हैं, वो छठ पर अपनी माँ का आँचल पकड़ना चाहते हैं।”
यह त्योहार याद दिलाता है कि चाहे इंसान कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए,
उसका दिल अब भी अपने गाँव के सूरज से जुड़ा है।
🌞 छठ – अनुशासन, आस्था और आत्मबल का संगम
छठ सिर्फ भावनाओं का पर्व नहीं, यह सहनशीलता की परीक्षा भी है।
- व्रती 36 घंटे तक बिना पानी और भोजन के रहते हैं।
- डूबते और उगते सूर्य — दोनों को अर्घ्य देते हैं।
- इस पूजा में कोई पुजारी नहीं, कोई जात-पात नहीं — बस मन, मातृभूमि और सूर्य।
छठ वह पर्व है जहाँ स्त्री सबसे ऊँचे आध्यात्मिक शिखर पर होती है।
वह स्वयं ब्रह्मांड को प्रणाम करती है और अपने परिवार के सुख की कामना करती है।
💬 खबरी न्यूज़ का ग्राउंड रिपोर्ट: जब घाटों पर उमड़ता जनसैलाब
खबरी न्यूज़ की टीम जब चकिया, बलिया, बक्सर, पटना और दरभंगा के घाटों पर पहुँची,
तो लगा जैसे पूरा ब्रह्मांड वहीं उतर आया हो।
नदियों के किनारे हजारों महिलाएँ सिंदूर लगाए, साड़ी के पल्लू से दीपक की लौ बचाते हुए,
धीरे-धीरे “सूरज देव” को अर्घ्य दे रही थीं।
आकाश में ढलता सूरज, और घाट पर जलती आस्थाएँ —
वो दृश्य हर कैमरे को नम कर गया।
एक वृद्ध महिला ने कहा —
“बाबू, छठ पूजा ना हो तो मन नहीं मानता। हमरे लिए ई पूजा नहीं, जीवन का प्रण है।”
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ — छठ का प्रभाव
छठ से केवल भावनाएँ नहीं, गाँवों की अर्थव्यवस्था भी जीवित होती है।
गाँवों के बाजारों में चहल-पहल लौट आती है।
गाँव के मजदूर, कारीगर, दुकानदार — सभी के घरों में इस दौरान समृद्धि का दीपक जलता है।
- बांस-लकड़ी उद्योगों में नई मांग।
- मिठाई दुकानों, कपड़े की दुकानों, और सब्ज़ी बाजारों में रौनक।
- छोटी-छोटी दुकानों की सालभर की कमाई सिर्फ इन चार दिनों में पूरी हो जाती है।
आस्था का अर्थशास्त्र – जब भावनाएँ GDP को छूती हैं
छठ यह दिखाता है कि आस्था सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, आर्थिक पूंजी भी है।
भारत में त्योहारों से GDP का 2-3% हिस्सा प्रभावित होता है।
छठ, दिवाली और दुर्गा पूजा जैसे त्योहार स्थानीय अर्थव्यवस्था को सीधा बल देते हैं।
यही वजह है कि जब लोग कहते हैं “त्योहार खर्च बढ़ाते हैं,”
तो दरअसल वे भूल जाते हैं कि यही खर्च ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को जिंदा रखते हैं।
🕯️ जब घाटों पर दिया जलता है, तो सिर्फ जल नहीं उठता…
छठ के चौथे दिन जब सूर्य उगता है,
तब घाटों पर झिलमिलाते दीये केवल रोशनी नहीं देते —
वे एक संस्कृति की पुनर्स्थापना करते हैं।
वह जलता दिया बताता है —
भारत अब भी जीवित है क्योंकि उसके पास माँ, मिट्टी और सूर्य की आस्था है।
जब जल में नारियल डूबता है, तो लगता है जैसे हर दर्द, हर थकान, हर संघर्ष सूर्य की किरणों में घुल रहा है।
खबरी न्यूज़ की राय – छठ सिर्फ पर्व नहीं, भारत की आत्मा है
छठ भारत के समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और अध्यात्म — तीनों का संगम है।
यह वो पर्व है जो मेट्रो शहरों की भीड़ को गाँवों के घाटों तक खींच लाता है।
जो लोगों को उनकी मिट्टी से, उनकी माँ से, और उनके मूल संस्कार से जोड़ देता है।
खबरी न्यूज़ का सुझाव:
👉 सरकार को चाहिए कि वह छठ पर्व के दौरान कारीगरों, फल उत्पादकों और ग्रामीण बाजारों के लिए “छठ इकोनॉमिक फंड” बनाए,
ताकि इस पर्व की आस्था आर्थिक सशक्तिकरण का स्थायी माध्यम बन सके।
अंतिम पंक्ति – छठ सिर्फ सूर्य की नहीं, हर उस माँ की आराधना है जो घर संभालती है
जब घाट पर अर्घ्य देते वक्त माँ की आंखों से आँसू गिरते हैं,
तो वे आँसू केवल पूजा का हिस्सा नहीं — वह प्रार्थना, पीड़ा और प्रेम का महासागर हैं।
“छठ में जलता दीपक सिर्फ मिट्टी का नहीं होता —
वह हर माँ की आस्था का प्रतीक होता है, जो अपने बच्चों के लिए सूर्य से भी बड़ा उजाला मांगती है।”
📊 डेटा सोर्स:
- बिहार सरकार एवं इंडस्ट्री रिपोर्ट्स (त्योहार आधारित आर्थिक गतिविधि का औसत विश्लेषण)
- CAIT व अन्य ट्रेड बॉडीज के अनुमानित आंकड़े (2023–2024)
- स्थानीय व्यापारियों, बाजार विशेषज्ञों व खबरी न्यूज़ के ग्राउंड सर्वे के आधार पर आकलन
🗞️ रिपोर्ट: खबरी न्यूज़ नेशनल नेटवर्क, चंदौली ब्यूरो
📷 फोटो इनपुट: खबरी टीम – 🖊️ लेखन:
✍️ संपादन व दिशा निर्देशन: एडवोकेट के.सी. श्रीवास्तव


