


चकिया (चंदौली)।
चकिया तहसील में एक महिला आवेदिका मुश्तरी बेगम द्वारा लगाए गए आरोपों ने प्रशासनिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। प्रार्थिनी का कहना है कि टी.ए. लगाने के प्रकरण में तहसीलदार ने उपजिलाधिकारी के निर्देश के बावजूद जल्दबाजी में आदेश पारित कर दिया, जबकि पत्रावली में 29 सितम्बर तक प्रस्तरवार आख्या भेजने की बात दर्ज थी।
मुश्तरी बेगम ने आरोप लगाया कि उनके द्वारा दिये गए प्रार्थना पत्र में यह भी स्पष्ट लिखा गया था कि “मेरा तहसीलदार के न्यायालय से एतबार उठ गया है, अतः प्रकरण उपजिलाधिकारी के न्यायालय में निस्तारित किया जाए।” बावजूद इसके, आदेश तहसीलदार स्तर पर ही पारित कर दिया गया।



🧾 प्रार्थिनी की शिकायत और मांग
मुश्तरी बेगम का कहना है कि उन्होंने उपजिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र देकर अपने मामले को तहसीलदार के स्थान पर एसडीएम न्यायालय को भेजने की मांग की थी।
उनका आरोप है कि तहसीलदार के न्यायालय में निष्पक्ष सुनवाई की संभावना नहीं थी, इसलिए उन्होंने उच्च अधिकारी से “फेथ ट्रांसफर” की मांग की।
लेकिन, इसके बावजूद तहसीलदार ने उसी प्रकरण में आदेश पारित कर दिया, जिससे प्रार्थिनी को न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाने पड़े।
उन्होंने कहा,
“जब मैंने स्पष्ट कहा था कि मुझे तहसीलदार पर भरोसा नहीं, तो उसी न्यायालय से आदेश पारित करना अनुचित है। इससे साफ लगता है कि हमारी बात को नजरअंदाज किया गया।”
🏛️ प्रशासनिक पक्ष – “निर्णय रिकॉर्ड के आधार पर लिया गया”
प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि मामला प्रक्रिया के अनुसार निस्तारित किया गया है।
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“तहसीलदार ने जो आदेश पारित किया है, वह पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों और रिपोर्ट के आधार पर किया गया। प्रार्थिनी की आपत्ति प्राप्त हुई है, जिसे उच्च स्तर पर भेज दिया गया है। अगर किसी बिंदु पर त्रुटि पाई जाती है, तो आवश्यक जांच की जाएगी।”
प्रशासन का यह भी कहना है कि यदि किसी आवेदक को आदेश से असंतोष है तो वह अपील का अधिकार रखता है, और यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
⚖️ विवाद का मूल – ‘निर्देश बनाम आदेश’
पूरा मामला इस बात पर केंद्रित है कि उपजिलाधिकारी के निर्देश में “29 सितम्बर तक प्रस्तरवार आख्या” मांगी गई थी, परंतु तहसीलदार ने उससे पूर्व ही आदेश पारित कर दिया।
प्रार्थिनी इसे प्रक्रिया का उल्लंघन मानती हैं, जबकि प्रशासनिक पक्ष इसे “रिकॉर्ड आधारित वैधानिक निर्णय” बता रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मामला भ्रष्टाचार से ज्यादा प्रक्रियागत भ्रम और विश्वास के संकट से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है।

📜 शिकायत पहुँची उच्चाधिकारियों तक
मुश्तरी बेगम ने इस प्रकरण में राजस्व परिषद, मंडलायुक्त, जिलाधिकारी तथा उपजिलाधिकारी चकिया को भी पत्र भेजा है।
उनकी मांग है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए ताकि भविष्य में किसी अन्य आवेदक को इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े।
जिलाधिकारी कार्यालय सूत्रों के मुताबिक, मामले का संज्ञान लिया जा चुका है और प्रारंभिक जानकारी मांगी गई है।
💬 स्थानीय प्रतिक्रिया – “दोनों पक्षों की बात सुनी जानी चाहिए”
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह मामला संवेदनशील है और इसमें जल्दबाजी में किसी पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता शशि पांडेय ने कहा,
“महिला की बात सुनी जानी चाहिए, लेकिन तहसील प्रशासन को भी अपनी प्रक्रिया समझाने का अवसर मिलना चाहिए। प्रशासन और जनता के बीच विश्वास सबसे जरूरी है।”
🕊️ Khabari News का निष्कर्ष
Khabari News का मानना है कि यह विवाद केवल एक आवेदन का नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और विश्वास का प्रतीक है।
अगर प्रार्थिनी की बात सही है तो यह न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत दर्शाता है, वहीं अगर तहसीलदार का निर्णय वैधानिक है तो उसे स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड पर लाया जाना चाहिए।
अब देखने वाली बात होगी कि उच्च अधिकारी इस प्रकरण को किस तरह से जांचते हैं और क्या मुश्तरी बेगम को न्यायिक संतुष्टि मिलती है।


