

खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क चकिया‚चन्दौली।
भटवारे ग्राम का उच्च प्राथमिक विद्यालय, जो बच्चों के भविष्य को गढ़ने का स्थान होना चाहिए, शुक्रवार 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस एक ऐसी घटना का गवाह बना जिसने न केवल गांव के लोगों को हिला दिया बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। यहां के कम्पोजिट विद्यालय के शिक्षक व प्रभारी प्रधानाचार्य अभिताभ सिंह और ग्राम प्रधान निखिल कुमार पटेल के बीच हुई जोरदार हाथापाई ने माहौल को अशांत कर दिया।
घटना की शुरुआत – एक बुलावे से टकराव तक
सुबह का समय था ध्वजारोहण का कार्यक्रम चल रहा था । बच्चे मिठाई खाने में लगे हुए थे। इसी बीच जानकारी मिली कि प्रभारी प्रधानाचार्य अभिताभ सिंह ने ग्राम प्रधान निखिल पटेल को स्कूल में बुलाया। कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन जिस अंदाज़ में यह बुलावा दिया गया और आगे जो कुछ हुआ, उसने सभी को चौंका दिया।
ग्राम प्रधान जैसे ही स्कूल पहुंचे, आरोप है कि प्रभारी प्रधानाचार्य ने उन्हें बेइज्जत करने की कोशिश की और गुस्से में उन्हें स्कूल से निकल जाने के लिए कहा। चश्मदीदों के मुताबिक, निखिल पटेल ने माहौल बिगड़ने से बचाने के लिए खुद को अलग करना चाहा और आगे बढ़ गए। लेकिन मामला यहीं शांत नहीं हुआ।



धमकियों का सिलसिला – “देख लेंगे” की भाषा में जहर
प्रधानाचार्य के कथित शब्द थे – “हम राजपूत हैं… देख लेंगे…”। इस तरह की जातिगत डींग और धमकी भरे लहजे ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। ग्राम प्रधान के आगे बढ़ जाने के बाद भी प्रभारी लगातार धमकी देते रहे।
दूसरी मुठभेड़ – धक्का, बहस और मारपीट
जब प्रधानाचार्य अभिताभ सिंह फिर से प्रधान निखिल पटेल के सामने आए, तो तनाव अपने चरम पर था। आरोप है कि निखिल पटेल ने सिर्फ रास्ता बनाने के लिए हल्का सा धक्का दिया, लेकिन इसके बाद जो हुआ वह एक शर्मनाक हिंसा में बदल गया।
गवाह बताते हैं कि प्रधानाचार्य ने प्रधान पर टूटकर हमला किया और जमकर मारपीट की। इस हाथापाई में न केवल प्रधान की गरिमा को ठेस पहुंची बल्कि विद्यालय का माहौल भी भय और तनाव से भर गया।
शिक्षा का मंदिर या राजनीति का अखाड़ा?
विद्यालय के आंगन में यह सब कुछ बच्चों के सामने हुआ। सोचिए, वे मासूम बच्चे जो शिक्षक से ज्ञान और आदर्श सीखने आते हैं, उन्होंने अपने गुरुजनों को हाथापाई करते देखा। यह दृश्य उनकी नज़रों में शिक्षक की छवि को कितना गिरा गया होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
गांव के बुजुर्ग कहते हैं – “शिक्षा मंदिर में इस तरह की गाली-गलौज और जाति की डींग सुनना, बच्चों के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है।”

कोतवाली का रास्ता – न्याय की उम्मीद में
घटना के बाद, प्रधान निखिल पटेल सीधे कोतवाली पहुंचे। वहां उन्होंने पूरी घटना की लिखित शिकायत दी। उनके प्रार्थना पत्र में स्पष्ट लिखा गया कि किस तरह उन्हें बुलाकर बेइज्जत किया गया, धमकियां दी गईं और फिर शारीरिक हमला किया गया।
ग्राम में आक्रोश – पंचायत और जनचर्चा
घटना के बाद भटवारे और आसपास के गांवों में इस विषय पर जबरदस्त चर्चा है। लोग पूछ रहे हैं –
- क्या शिक्षक का यह आचरण शिक्षा व्यवस्था की गरिमा के अनुरूप है?
- क्या जातिगत डींग हांकना और धमकी देना शिक्षक की नैतिक जिम्मेदारी के खिलाफ नहीं?
- क्या विद्यालय बच्चों की शिक्षा के लिए है या व्यक्तिगत रंजिश और शक्ति प्रदर्शन के लिए?
प्रशासन पर सवाल – कार्रवाई कब?
गांव के लोग मांग कर रहे हैं कि इस पूरे मामले में तत्काल जांच हो और दोषी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। उनका कहना है कि अगर यह मामला दबा दिया गया तो आने वाले समय में विद्यालयों में अनुशासन और अधिक टूटेगा।
भावनात्मक असर – टूटा विश्वास
यह घटना सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि यह एक समुदाय के विश्वास का टूटना है। शिक्षक वह शख्स होता है जिस पर समाज अपने बच्चों का भविष्य सौंपता है, और प्रधान गांव का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है। जब दोनों खुलेआम भिड़ने लगें, तो आम जनता को किससे उम्मीद रखनी चाहिए?
Khabari News की अपील
Khabari News इस मामले में प्रशासन से अपील करता है कि –
- इस घटना की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
- दोषी पाए जाने पर संबंधित पर सख्त कार्रवाई की जाए।
- विद्यालयों में राजनीतिक हस्तक्षेप और जातिगत बयानबाजी पर रोक लगाने के ठोस नियम लागू किए जाएं।
- बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऐसे मामलों में काउंसलिंग सत्र आयोजित हों।
निष्कर्ष – शिक्षा का मंदिर बचाना होगा
भटवारे की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि अगर हम समय रहते अपने शिक्षा संस्थानों की पवित्रता नहीं बचा पाए, तो आने वाली पीढ़ियां न केवल पढ़ाई से बल्कि मूल्यों से भी दूर हो जाएंगी। यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का सवाल है।


