
(Editor-in-Chief : Advocate K.C. Shrivastava)
(Special Ground Coverage : Khabari News Team, Chakia – Dharmveer Singh)
चकिया, चंदौली | Khabari News :
सरोवर की लहरों पर झिलमिलाते दीपक… हवा में गूंजते छठ गीत… और माँ काली मंदिर परिसर में उमड़ती श्रद्धा की भीड़।
आज से प्रारंभ हुआ डाला छठ ब्रत— आस्था, विश्वास और परंपरा का सबसे पवित्र संगम। 🌸
जब सूरज ढल रहा था, उसी वक्त सैकड़ों माताएँ और बहनें माँ काली मंदिर स्थित सरोवर के किनारे पहुँचीं।
किसी के हाथ में पूजा की टोकरी, किसी के थाल में गन्ना, नारियल, सुप, फल और दीया।
धीरे-धीरे उन्होंने मिट्टी से बेदी बनाई — एक-एक हाथ से, पूरे प्रेम और श्रद्धा के साथ।
फिर उसी बेदी पर धूप, दीप, और फूल चढ़ाकर छठ मइया से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की।
🌕 डाला छठ — आस्था का वो दीप जो अंधकार मिटा देता है
यह सिर्फ पर्व नहीं, जीवन का अनुशासन है।
चार दिनों तक चलने वाले इस ब्रत की शुरुआत होती है नहाय-खाय से,
फिर आता है खरना,
और उसके बाद — डाला छठ भगत का यह शुभ दिन,
जब महिलाएँ घर से निकलकर घाट या सरोवर किनारे बेदी बनाती हैं।
यह बेदी उनके मन का प्रतीक होती है —
जहाँ वे अपने भीतर की सारी नकारात्मकता को छोड़कर प्रकाश की ओर बढ़ती हैं।
माँ काली मंदिर परिसर का सरोवर आज इस आस्था का साक्षी बना।
ढलते सूरज की रोशनी जब दीपों से टकराई, तो ऐसा लगा मानो
सूर्यदेव स्वयं धरती पर उतर आए हों,
और माँ काली के चरणों में श्रद्धा की गंगा बह निकली हो।



🙏 माताओं का समर्पण — हाथों में दीपक, आँखों में विश्वास
माँओं ने जब जलते दीपक हाथ में उठाए, तो दृश्य बिल्कुल अलौकिक था।
उनके कदम धीमे, लेकिन विश्वास अटूट।
हर चेहरे पर शांति, और हर नजर में छठ मइया का नाम।
कोई अपने बच्चे की पढ़ाई की सफलता की कामना कर रही थी,
कोई बीमार पति के स्वस्थ होने की दुआ मांग रही थी,
तो कोई बस यही चाह रही थी —
“मइया, हमरा घर में सुख रहे, शांति रहे, कोई दुःख न आवे।”
वहीं कुछ बुजुर्ग महिलाएँ पारंपरिक गीत गा रही थीं —
“केलवा के पात पे उगेले सूरज देव, अर्घ दिहीं रानी…”
और सरोवर की लहरें उस गीत के साथ झूम रही थीं।
धूप-दीप से भक्ति, सरोवर से शुद्धता, और मन से समर्पण
छठ पूजा का पहला दिन यानी डाला छठ भगत सिर्फ पूजा का आरंभ नहीं,
बल्कि मन की शुद्धता का उत्सव है।
आज जब महिलाओं ने पोखरे की मिट्टी से बेदी बनाई,
तो उसमें उन्होंने अपने जीवन के हर दुःख-सुख को मिलाया।
वह बेदी बनती गई… और उसी के साथ बनती गई आस्था की नींव।
सरोवर का पानी जब दीपों से झिलमिलाया,
तो लगा जैसे पूरा चकिया शहर भक्ति की लौ से रोशन हो गया हो।
माँ काली मंदिर के प्रांगण में हवा तक में श्रद्धा तैर रही थी।
लोगों ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया —
और कहा, “जय छठ मइया, जय माँ काली!”
💫 खबरी न्यूज का ग्राउंड रियलिटी कवरेज
खबरी न्यूज टीम जब पहुँची माँ काली मंदिर परिसर,
तो दृश्य देखकर दिल भर आया।
छोटे-छोटे बच्चे भी माँओं के साथ बेदी बनाने में लगे थे।
कहीं लाल साड़ी में सजधजकर महिलाएँ धूप जलाती दिखीं,
तो कहीं नवयुवतियाँ दीपक संभालते हुए छठ गीत गा रही थीं।
हर ओर भक्ति, हर दिशा में विश्वास।
Editor-in-Chief एडवोकेट के.सी. श्रीवास्तव ने इस अवसर पर कहा –
“छठ पर्व सिर्फ पूजा नहीं है,
यह हमारी संस्कृति, हमारी माँओं की शक्ति और परिवार के एकत्व का उत्सव है।
जिस घर में छठ मइया की आराधना होती है, वहाँ सुख और शांति स्थायी रहती है।”
🌞 डूबते सूरज से लेकर उगते सूर्य तक — आस्था का सफर जारी रहेगा
आज का दिन था शुरुआत का —
कल होगा खरना का उपवास,
जहाँ व्रती महिलाएँ गुड़-चावल का प्रसाद बनाकर ग्रहण करेंगी,
और फिर अगले दो दिनों तक निर्जला उपवास रखकर
सूर्यदेव को अर्घ्य देंगी।
माँ काली मंदिर परिसर पर जो दृश्य आज दिखा,
वह आने वाले दो दिनों की झलक थी —
जब यह सरोवर दीपों का सागर बनेगा,
और सूर्य की पहली किरण जब पानी में पड़ेगी,
तो हर व्रती के चेहरे पर झलकेगा पूर्णता का तेज।
🌺 आस्था की शक्ति — समाज को जोड़ने वाली परंपरा
छठ पूजा का असली संदेश यही है — सामूहिकता में शक्ति।
यह पर्व हमें सिखाता है कि भक्ति अकेले नहीं होती,
वह परिवार, समाज और प्रकृति के संग होती है।
आज जो महिलाएँ बेदी बनाकर लौटीं,
वे अपने घर में दीपक के साथ आस्था भी ले गईं।
उनके हाथों की लौ अब घर-घर में जल रही है —
जो आने वाले चार दिनों तक पूरे चकिया को जगमगाए रखेगी।
✨ धार्मिक महत्व (Religious Significance)
डाला छठ का यह दिन सूर्योपासना की तैयारी का प्रतीक है।
यहाँ व्रती महिलाएँ धरती की मिट्टी से बेदी बनाकर
सूर्यदेव और छठ मइया को आमंत्रित करती हैं कि
वे उनके घर आएँ, उनके परिवार को आशीर्वाद दें।
मिट्टी से बेदी बनाना प्रकृति से एकाकार होने का संकेत है।
दीप जलाना अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक।
धार्मिक मान्यता के अनुसार,
छठी मइया भगवान सूर्य की बहन मानी जाती हैं।
जो व्यक्ति सच्चे मन से इस पर्व का पालन करता है,
उसके जीवन में सुख, समृद्धि और संतुलन आता है।
यही कारण है कि इस दिन का हर क्षण पवित्र और स्पंदनशील होता है।
🌼 चकिया की पहचान – माँ काली मंदिर परिसर का छठ घाट
चकिया का यह मंदिर परिसर अब सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं,
बल्कि पूरे पूर्वांचल की आस्था का केंद्र बन चुका है।
हर साल यहाँ हजारों की संख्या में महिलाएँ और श्रद्धालु जुटते हैं।
इस बार भी, जैसे ही डाला छठ भगत प्रारंभ हुआ,
लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
मंदिर परिसर में बच्चों की किलकारियाँ,
महिलाओं की भक्ति,
पुरुषों की सेवा भावना –
सब मिलकर एक ऐसा माहौल बना रहे थे
जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।
🌙 अंत में… खबरी न्यूज की भावनात्मक अपील
जब आखिरी माँ भी अपने दीपक को हाथ में लेकर घर की ओर लौटी,
तो सरोवर की लहरें मानो आशीर्वाद दे रही थीं।
हर दीप में थी एक कहानी,
हर चेहरे पर एक उम्मीद।
और यही उम्मीद हमारी सभ्यता का सबसे सुंदर रूप है।
“छठ मइया से यही प्रार्थना –
हर घर में खुशियाँ बनी रहें,
माँ काली का आशीर्वाद सब पर बना रहे,
और चकिया की धरती पर आस्था की यह रोशनी कभी न बुझे।”



