



खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क चकिया‚चन्दौली।
“स्कूल बस के भीतर बैठा मेरा बच्चा रो रहा था, धूप में पसीने से तर-बतर था… लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। प्रशासन ने हमारी फरियाद पर ताला लगा दिया था।”
यह शब्द हैं एक अभिभावक के, जिसकी आंखें बच्चे की सुरक्षा को लेकर डरी हुई थीं और हृदय में उपेक्षा का दर्द साफ झलक रहा था।
शनिवार का दिन, चकिया में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का आगमन। मंच सजाया जा रहा था, फूलों की लड़ियाँ लटकाई जा रही थीं, अफसरों की फौज लाइन में खड़ी थी… और दूसरी ओर स्कूली बच्चों से भरी बसें कार्यक्रम स्थल के आसपास रोक दी गईं।
बंद खिड़कियों में घुटते मासूम, और मोबाइल पर ‘बिजी’ जन प्रतिनिधि
करीब एक से डेढ़ घंटे तक बच्चों की बसें चिलचिलाती गर्मी में रुकी रहीं। न पानी, न टॉयलेट, न कोई राहत। क्या यही ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ का सजीव उदाहरण था?
जब अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने डीएम, एसपी और विधायक से संपर्क करने की कोशिश की, तो फोन या तो उठे नहीं… या जवाब आया –
“हम डिप्टी सीएम के कार्यक्रम में व्यस्त हैं, बात नहीं करेंगे।”
इस बातचीत की रिकॉर्डिंग भी मौजूद है, जिसे अब सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है।
“शिक्षा सर्वोपरि है” – भाषणों में अच्छा लगता है क्या?
नेताओं के भाषणों में बार-बार शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बताया जाता है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है – जहाँ VIP मूवमेंट के नाम पर बच्चों को बंधक बना दिया गया।
क्या कोई मुख्यमंत्री या मंत्री अपने बच्चों को एक घंटे तक बिना हवा-पानी के बस में बैठने देगा?
तो फिर हमारे बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?
चकिया नेता व जन प्रतिनिधि – ‘मौन साधना’ में लीन
चकिया विधानसभा से चुने गए जनप्रतिनिधि भी इस पूरे घटनाक्रम में पूरी तरह मौन रहे।
जब कॉल किया गया तो जवाब था – “We are busy, don’t disturb.”
इस जवाब ने सवाल खड़ा कर दिया –
👉 क्या VIP की सुरक्षा बच्चों की सुरक्षा से बड़ी हो गई है?
👉 क्या कार्यक्रम की चमक बच्चों की पढ़ाई पर भारी पड़ गई है?
👉 क्या एक विधायक और सांसद बच्चों के लिए दो शब्द कहने की हिम्मत नहीं रखते?
सिस्टम में संवेदना मर चुकी है!
इस घटना ने एक बात तो साफ कर दी – सिस्टम संवेदनहीन हो चुका है।
जब जनता की आवाज उठाने वाला प्रतिनिधि खुद अपने ही क्षेत्र के बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी करता है, तो लोकतंत्र का अर्थ ही खो जाता है। डालिम्स सनबीम के प्रबंधक डा विवेक प्रताप सिंह ने कहा कि बच्चों के साथ इतना संवेदनशील नही होना चाहिए।
समय आ गया है – जवाब मांगा जाए
Khabari News के माध्यम से हम ये सवाल पूरे ज़िले और प्रदेश से पूछते हैं:
- क्या बच्चों को ऐसे बसों में कैद करना उचित था?
- किस आदेश के तहत स्कूल बसों को रोका गया?
- क्या जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने इसकी अनुमति दी थी ?
- चकिया विधायक और सांसद ने बच्चों के लिए क्या कदम उठाया ?



जनता के सवालों का जवाब दो
ये कोई सामान्य प्रशासनिक चूक नहीं थी। यह एक मानवता पर हमला था। बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले चाहे कितने भी बड़े पद पर हों, जवाबदेह होंगे।
बोलती तस्वीरें, कांपते शब्द – बच्चों के वीडियो हुए वायरल
इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिसमें बच्चे बसों में बैठे रो रहे हैं, गर्मी से बेहाल हैं। कुछ बच्चों के माता-पिता तो घबराकर स्कूलों तक पहुंच गए।
“हमारा बच्चा स्कूल गया था, जेल नहीं” – अभिभावक
एक मां ने कहा –
“हमने स्कूल भेजा था, सरकारी तामझाम के बीच फंसाने नहीं। क्या हम अब बच्चों को स्कूल भेजने से डरें?”
निष्कर्ष – अब बस नहीं!
डिप्टी सीएम का कार्यक्रम हो या प्रधानमंत्री का दौरा – बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा से बड़ा कोई आयोजन नहीं हो सकता।
नेताओं और अफसरों को अब समझना होगा कि VIP मूवमेंट को लेकर आमजन खासकर बच्चों को परेशान करना अपराध की श्रेणी में आना चाहिए।

