- व्यापारियों के सहयोग से पान व्यवसायी को मिली नई ज़िंदगी
- चकिया में दिखी वो तस्वीर, जहां सिस्टम से पहले समाज खड़ा हुआ
- ₹11,000 की मदद नहीं, भरोसे की पूंजी बनी रामनारायण मौर्य के लिए सहारा

खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क चकिया (चंदौली)।
कभी-कभी आग केवल लकड़ी, तख्त और सामान नहीं जलाती…
वह एक परिवार की उम्मीद, मेहनत की पूंजी और जीवन की गति को भी झुलसा देती है।
चकिया नगर में मंगलवार की भोर कुछ ऐसा ही हुआ, जब कचहरी के पास वर्षों से पान की छोटी-सी गुमटी चलाकर परिवार का पेट पालने वाले रामनारायण मौर्य की दुकान में अचानक आग लग गई। सुबह की खामोशी को चीरती लपटों ने कुछ ही पलों में गुमटी में रखा पूरा सामान राख में बदल दिया।
जब धुआं छंटा, तो सामने था —
एक जली हुई गुमटी, खाली हाथ और आंखों में अनगिनत सवाल।


भोर की आग, दिनभर का सन्नाटा
यह घटना मंगलवार तड़के की है। आसपास के लोगों ने जब धुआं उठता देखा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पान, सुपारी, तंबाकू, बीड़ी, गुटखा, नकद राशि — जो भी रोज़ की कमाई और अगली सुबह की उम्मीद थी, सब कुछ जल चुका था।
रामनारायण मौर्य के लिए यह सिर्फ दुकान का नुकसान नहीं था।
यह उनके घर का चूल्हा, बच्चों की पढ़ाई और परिवार की दवाइयों से जुड़ा सवाल था।
आग के बाद वे गुमटी के सामने खड़े थे —
ना आंसू निकल रहे थे, ना शब्द।
बस एक खामोश पीड़ा थी, जो सब कुछ कह रही थी।
जब खबर नहीं, संवेदना सबसे पहले पहुंची
घटना की जानकारी जैसे ही नगर में फैली, व्यापार संगठन चकिया के सक्रिय व्यापारी नेता शुभम मोदनवाल और विष्णु जायसवाल ने बिना देर किए पहल की।
न कोई मीटिंग, न कोई औपचारिक घोषणा —
बस एक व्हाट्सएप मैसेज…
“हमारा एक साथी आज सब कुछ खो बैठा है,
आइए, मिलकर उसका सहारा बनें।”
और यहीं से शुरू हुई चकिया की वह कहानी,
जो बताती है कि संकट में सिस्टम से पहले समाज खड़ा होता है।

छोटे सहयोग, बड़ा संबल
व्यापारियों ने किसी से ज्यादा, किसी से कम —
लेकिन दिल से सहयोग किया।
₹50… ₹100… ₹200…
राशि छोटी थी, पर भावना विशाल।
कुछ ही घंटों में ₹11,000 की धनराशि एकत्रित हो गई।
यह रकम भले किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए छोटी हो,
लेकिन रामनारायण मौर्य के लिए यह दोबारा सांस लेने जैसा था।
मदद का तरीका भी मिसाल
सबसे खास बात यह रही कि सहयोग केवल नकद देकर औपचारिकता पूरी नहीं की गई।
एकत्रित राशि से गांधी पार्क स्थित दुकान से
पान व्यवसाय से जुड़ी आवश्यक सामग्री खरीदी गई —
ताकि पीड़ित व्यापारी उसी दिन
अपनी दुकान दोबारा शुरू कर सके।
न कोई फोटो सेशन,
न कोई मंचीय भाषण —
बस काम… और इंसानियत।
जली गुमटी से उठती उम्मीद
जब रामनारायण मौर्य ने दोबारा पान सजाया,
तो आंखें नम थीं —
लेकिन इस बार आग की वजह से नहीं,
भरोसे की वजह से।
उन्होंने कहा (भावुक स्वर में) —
“अगर ये लोग साथ न देते,
तो शायद मैं दोबारा खड़ा ही नहीं हो पाता।”
यह एक वाक्य नहीं था,
यह उस भरोसे की गवाही थी,
जो समाज को समाज बनाता है।


कौन-कौन बने इस मुहिम का हिस्सा
इस मानवीय पहल में जिन लोगों ने सहयोग किया,
वे सभी चकिया की सामाजिक चेतना के स्तंभ हैं —
फैजुर रहमान,कैलाश जायसवाल,अमरदीप मोदनवाल,मनोज जायसवाल,प्रशांत गुप्ता,भोला गुप्ता,अजय पटेल,पिंटू गुप्ता,पूजा जायसवाल,हिमांशु कश्यप,सत्यम जायसवाल,प्रियांशु जायसवाल,सूरज द्विवेदी,भोला खरवार,मनोज गुप्ता,डॉ. अशोक कुमार,
सत्यप्रकाश गुप्ता,आशीष,राजनारायण,लालू,सतेंद्र मद्धेशिया,वैभव मिश्रा,डॉ. सूर्यदेव,आशीष मोदनवाल,अनिल केशरी,मनीष तिवारी,आसिफ कमर,बबलू मौर्य,बबलू जायसवाल,किशन श्रीवास्तव,चंद्रप्रभा साहित्य संस्थान
इन सभी का सहयोग यह बताता है कि
समाज आज भी जिंदा है, बस उसे मौका चाहिए।
खबरी न्यूज़ विश्लेषण
यह खबर सिर्फ “मदद” की नहीं है। यह उस संवेदनशीलता की कहानी है,
जो बड़े शहरों की चकाचौंध में कहीं खोती जा रही है।
चकिया ने यह साबित किया कि —
“राहत के लिए हमेशा आदेश, फाइल और प्रक्रिया का इंतजार जरूरी नहीं।”
जब लोग खुद खड़े हो जाते हैं, तो पीड़ित को सिर्फ सहायता नहीं मिलती, उसे सम्मान भी मिलता है।
सवाल जो सिस्टम से भी है
अगर व्यापारी संगठन कुछ घंटों में मदद कर सकता है, तो क्या ऐसी घटनाओं के लिए
आपदा राहत या त्वरित सहायता व्यवस्था और मजबूत नहीं होनी चाहिए?
यह सोचने का वक्त है —
ताकि अगली बार किसी रामनारायण को कम से कम अकेला न महसूस करना पड़े।
खबरी न्यूज़ की बात
यह खबर “आग” से शुरू हुई, लेकिन “आदमी” पर खत्म हुई।
यही फर्क है —
खबर होने और खबर बनने में।चकिया के व्यापारियों ने
सिर्फ एक दुकान नहीं, एक परिवार का भरोसा बचाया है।
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