

नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025 | खबरी न्यूज विशेष रिपोर्ट
भारत के राजनीतिक इतिहास में एक भावनात्मक और चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया। यह खबर जैसे ही सामने आई, पूरे देश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई, और संसद के गलियारों में सन्नाटा छा गया।
धनखड़ ने राष्ट्रपति को एक गहराई से भावुक और गरिमामय पत्र लिखकर अपने इस्तीफे की जानकारी दी, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत अपना इस्तीफा सौंपा।
पत्र में क्या लिखा जगदीप धनखड़ ने?

राष्ट्रपति को संबोधित अपने पत्र में धनखड़ ने लिखा:
“स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार, तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।”
यह वाक्य न केवल एक संवैधानिक औपचारिकता थी, बल्कि उस मानसिक और शारीरिक संघर्ष की भी झलक देता है, जिससे वे पिछले कुछ समय से जूझ रहे थे।
कृतज्ञता के शब्दों में छलका भावनात्मक जुड़ाव
पत्र में उन्होंने न केवल एक संवैधानिक अधिकारी के रूप में अपनी भूमिका निभाने की बात कही, बल्कि अपने पूरे कार्यकाल को भावनाओं और संबंधों के साथ याद किया। उन्होंने लिखा:
“मैं महामहिम राष्ट्रपति के प्रति उनके अटूट समर्थन और हमारे बीच बने अद्भुत कार्य संबंधों के लिए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं।”
इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी मंत्रिपरिषद के प्रति भी अपना आभार व्यक्त किया:
“प्रधान मंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत कुछ सीखा है।”
संसद सदस्यों के लिए एक विशेष संदेश
अपने पत्र में धनखड़ ने सभी सांसदों के प्रति जो स्नेह और सम्मान व्यक्त किया, वह किसी औपचारिकता से परे था। उन्होंने कहा:
“सभी माननीय संसद सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह मिला है, वह हमेशा मेरी स्मृति में रहेगा।”
इस वाक्य ने स्पष्ट किया कि धनखड़ के लिए यह केवल एक संवैधानिक पद नहीं था, बल्कि यह एक सेवा का अवसर था, जिसमें उन्हें जनता और लोकतंत्र के सबसे बड़े मंच पर काम करने का सौभाग्य मिला।
राजनीतिक सफर: किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति तक
धनखड़ का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के एक साधारण किसान परिवार से आने वाले धनखड़ ने अपनी मेहनत, शिक्षा और दृढ़ निश्चय से देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया।
- जन्म: 18 मई 1951
- शिक्षा: लॉ की डिग्री, राजनीति में गहरी रुचि
- राजनीतिक शुरुआत: 1989 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश
- पद: केंद्रीय मंत्री, राजस्थान के राज्यपाल और अंततः उपराष्ट्रपति
धनखड़ का राजनीतिक सफर एक उदाहरण है कि कैसे साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी उच्चतम पदों पर पहुंच सकता है, यदि उसके पास संकल्प और जनसेवा का जज़्बा हो।
उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल
2022 में उपराष्ट्रपति बनने के बाद, धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उन्होंने अनेक बार संसद में गरिमा बनाए रखने की मिसाल पेश की। विपक्ष के कड़े तेवरों के बावजूद वे हमेशा संवाद और संतुलन की नीति पर चले।
उनके कार्यकाल की विशेषताएं:
- प्रशासनिक कुशलता
- संसदीय मर्यादाओं का पालन
- संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता
उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने के लिए कई बार संतुलन का परिचय दिया और दोनों पक्षों के बीच संवाद का सेतु बने।
स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं कब से थीं?
हाल के महीनों में यह चर्चा थी कि उपराष्ट्रपति की सार्वजनिक गतिविधियां कम हो गई हैं। कई आधिकारिक कार्यक्रमों में उनकी अनुपस्थिति ने इन अटकलों को बल दिया था कि उनकी सेहत ठीक नहीं चल रही।
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक उन्हें हृदय और रक्तचाप संबंधी दिक्कतें थीं, और डॉक्टरों ने उन्हें लंबा आराम करने की सलाह दी थी। ऐसे में, उन्होंने खुद के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए एक साहसिक निर्णय लिया और इस्तीफा देना उचित समझा।



सोशल मीडिया पर उमड़ा समर्थन
धनखड़ के इस्तीफे की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का सैलाब उमड़ पड़ा:
- #ThankYouDhankharJi ट्रेंड करने लगा
- हजारों लोगों ने उनके योगदान की सराहना की
- विपक्षी दलों तक ने उनके गरिमामय व्यवहार की प्रशंसा की
एक यूजर ने लिखा:
“धनखड़ जी का योगदान सदैव याद रखा जाएगा। उन्होंने हमेशा सदन की गरिमा बनाए रखी और जनभावनाओं का सम्मान किया।”
अब आगे क्या?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब देश में उपराष्ट्रपति पद के लिए नई नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होगी। संविधान के अनुसार, यह पद खाली होने के 6 महीने के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होता है।
फिलहाल, राज्यसभा की कार्यवाही पर भी इसका असर पड़ सकता है क्योंकि सभापति के रूप में धनखड़ की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
एक युग का अंत
धनखड़ का इस्तीफा केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक युग के समापन जैसा महसूस होता है। उनके कार्यकाल में जिस तरह का संतुलन, गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्यों का संरक्षण देखने को मिला, वह आने वाले उपराष्ट्रपतियों के लिए एक मानदंड बन गया है।

उनके शब्दों में:
“मैंने जो कुछ सीखा, वह मेरी धरोहर है। मैं इस सेवा काल को अपना सौभाग्य मानता हूं।”
खबरी की विशेष टिप्पणी
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारत की संवैधानिक राजनीति में एक गंभीर और भावनात्मक क्षण है। ऐसे समय में जब सार्वजनिक जीवन में धैर्य, संयम और गरिमा की कमी महसूस की जा रही है, धनखड़ जैसे नेता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
उनका यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि वे न केवल एक संवेदनशील नेता हैं बल्कि अपनी सीमाओं को समझने वाले सजग और जिम्मेदार संवैधानिक अधिकारी भी हैं।
आपके लिए प्रश्न:
आप जगदीप धनखड़ के कार्यकाल को कैसे याद रखेंगे? क्या आपको लगता है कि आने वाला उपराष्ट्रपति उनके पदचिन्हों पर चलेगा?
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रिपोर्टर: खबरी न्यूज़ वेव टीम
विषेष सहयोग: संसदीय रिपोर्ट डेस्क | संवैधानिक संवाद विश्लेषण टीम
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