
रिपोर्टः के.सी. श्रीवास्तव (संपादक खबरी न्यूज, अधिवक्ता)
खबरी न्यूज चकिया,चंदौली।
जब जंगल सुलगता है तो सिर्फ पेड़ नहीं जलते, वहां इंसानों की ज़िंदगी, उम्मीदें और घरों के सपने भी राख हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही मंजर सामने आया है चंदौली जिले के नौगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत अमदहां वन ब्लॉक में, जहां आरक्षित वन भूमि में अवैध रूप से खोदे गए कुएं को लेकर वन विभाग और ग्रामीणों के बीच हिंसा की चिंगारी भड़क गई। नतीजा—एक परिवार का आशियाना जलकर खाक हो गया, और सवालों के घेरे में खड़े हैं वो तमाम सरकारी तंत्र, जिनका काम था न्याय, पर आरोप लगे अन्याय के।



घटनाक्रम: कुआं को पाटने गई वन विभाग की टीम, मचा बवाल
मंगलवार को जयमोहनी वन रेंज की टीम, क्षेत्रीय वन अधिकारी मकसूद हुसैन के नेतृत्व में अमदहां वन ब्लॉक पहुंची थी। टीम के पास आदेश था—आरक्षित वन क्षेत्र में अवैध रूप से खोदे गए कुएं को जेसीबी मशीन की सहायता से पाटना। वन दरोगा बीरेंद्र पांडे, वनरक्षक सोमेश कुमार, धर्मवीर और प्रमोद कुमार की टीम जब मौके पर पहुंची, तो उन्हें स्थानीय ग्रामीण प्रताप और उसकी पत्नी नगवंती का विरोध झेलना पड़ा। प्रताप का आरोप था कि यह कुआं करीब 30 वर्ष पुराना है और यह उनका जीवन का एकमात्र जल स्रोत है।
सरकारी बनाम जनता: दोनो पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें
जहां वन विभाग का कहना है कि कुआं आरक्षित वन भूमि में स्थित है और इसे पाटना जरूरी था, वहीं पीड़िता नगवंती देवी का आरोप है कि बिना किसी पूर्व सूचना के, बिना नोटिस दिए, वनकर्मी अचानक पहुंचे और कुएं को पाटना शुरू कर दिया। जब उन्होंने और उनके पति ने विरोध किया, तो उनके साथ न केवल अभद्रता की गई, बल्कि मारपीट भी की गई और गुस्से में आकर उनके घर में आग लगा दी गई।
आग की लपटों में राख हुआ एक घर, सपना और ज़िंदगी
दमकल को सूचना दी गई, लेकिन जब तक फायर ब्रिगेड पहुंचती, तब तक मड़ई (झोपड़ी) पूरी तरह जल चुकी थी। घर में रखा सारा सामान—बर्तन, कपड़े, अनाज, दस्तावेज़ और बच्चों की किताबें—सब कुछ राख में तब्दील हो गया। नगवंती देवी की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। उनका कहना है, “हम गरीब हैं, क्या हमारे लिए कानून नहीं होता? हमारे लिए कोई न्याय नहीं है?”
पीड़ित पक्ष का आरोप: वनकर्मी खुद कर रहे मनमानी
नगवंती देवी ने नौगढ़ थाने में तहरीर देकर वनकर्मियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि वनकर्मी बार-बार प्रताड़ित करते हैं और अब तो बात हाथापाई और आगजनी तक पहुंच गई है। वहीं वन अधिकारी मकसूद हुसैन का कहना है कि प्रताप और नगवंती ने खुद ही आग लगाई, ताकि वन विभाग की कार्रवाई को बदनाम किया जा सके।
प्रशासन की चुप्पी, जनता की व्यथा
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि घटना के घंटों बाद तक कोई उच्च अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। न ही किसी प्रकार की राहत सामग्री पहुंचाई गई। मौके पर सिर्फ दमकल की गाड़ी आई, जिसने आग पर काबू पाया। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर वन विभाग की टीम कार्रवाई कर रही थी, तो सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम क्यों नहीं थे? और यदि वाकई आग ग्रामीणों ने लगाई थी, तो उन्हें ऐसा करने पर किस परिस्थिति ने मजबूर किया?
IGRS शिकायत से शुरू हुआ विवाद
इस पूरे प्रकरण की जड़ में एक और कहानी छिपी है। वन अधिकारी के अनुसार, प्रताप ने अपने ही पड़ोसी जगदीश के खिलाफ आरक्षित वन भूमि पर कुआं खोदवाने की शिकायत IGRS पोर्टल पर की थी। इसी शिकायत के निस्तारण के लिए वन विभाग की टीम गांव पहुंची थी। लेकिन मौके पर स्थिति उलट गई और प्रताप के पुराने कुएं को भी आरक्षित वन भूमि बताकर पाटने का प्रयास किया गया।
वन विभाग का एफआईआर, ग्रामीणों पर उल्टा मामला दर्ज
इस घटना के बाद वन विभाग ने प्रताप, नगवंती, जगदीश और मीरा देवी के खिलाफ वन अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करा दिया है। आरोप है कि उन्होंने वनकर्मियों पर लाठी-डंडों व कुल्हाड़ी से हमला कर उन्हें डराया और खदेड़ दिया। वनकर्मियों की ओर से यह भी दावा किया गया है कि कार्रवाई के दौरान ही प्रताप ने अपने घर में खुद आग लगाई।
जनता पूछ रही है:
- अगर कुआं 30 साल पुराना था तो क्या अब तक विभाग सो रहा था?
- बिना नोटिस दिए कार्यवाही करना क्या उचित है?
- अगर वाकई ग्रामीण दोषी हैं तो पहले भी कोई नोटिस, चालान या चेतावनी क्यों नहीं दी गई?
- क्या गरीबों की बात सुनने के लिए भी कोई मंच है या केवल एफआईआर और लाठी ही उनका न्याय हैं?
खबरी न्यूज़ की विशेष अपील
खबरी न्यूज इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करता है। यह मामला न केवल एक सरकारी विभाग और नागरिक के बीच के टकराव का है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि गरीब और असहाय जनता की सुनवाई कौन करेगा? जंगल बचाना जरूरी है, लेकिन इंसानियत और इंसानी घर जलाकर नहीं। प्रशासन को चाहिए कि दोनों पक्षों की जांच कर न्याय सुनिश्चित करे।
रिपोर्ट: के.सी. श्रीवास्तव (संपादक, खबरी न्यूज़)
📍 विशेष सहयोग – खबरी टीम नौगढ़/चकिया
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