
डूडा की ‘मौन शैली’ पर उठे सवाल — आखिर छुपाया क्या गया ?
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क चकिया‚चन्दौली। यह खबर चकिया के विकास की नहीं, विकास के नाम पर हो रही ‘खामोशी’ की है।
नगर पंचायत में डेढ़ करोड़ रुपये के नौ कार्यों का शिलान्यास तो नेताओं की मुस्कान खिली। मंच चमका, फोटोशूट हुआ, सोशल मीडिया झिलमिलाया।
लेकिन… लेकिन…
जब लोगों की निगाह शिलापट्टों पर गई—
तो पूरा खेल साफ दिख गया।
किसी भी शिलापट्ट पर यह नहीं लिखा था कि किस काम पर कितनी रकम खर्च होगी।
ना कोई ब्रेकअप, ना कोई विवरण, ना कोई पारदर्शिता।

डेढ़ करोड़ का ‘बड़ा पैकेज’, लेकिन रकम का ‘जीरो डिस्क्लोज़र’… क्यों?
विधायक कैलाश आचार्य पहुंचे, चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव मौजूद रहे, अधिकारी लाइन में खड़े रहे, पर शिलापट्टों पर सिर्फ “शुभारंभ, शिलान्यास, विकास कार्य” जैसे शब्द।
“लागत” वाली लाइन गायब।
“कार्य विवरण” गायब।
“आवंटित धन” गायब।
“स्वीकृत परियोजना” गायब।
नगर के कई लोगों ने मौके पर ही सवाल दाग दिया—
“जब पैसा जनता का है, तो विवरण छुपा क्यों रहे हो?”
डूडा की ‘मौन नीति’ समझ से परे
मुख्यमंत्री नगरीय अल्प विकसित एवं मलिन बस्ती विकास योजना के अंतर्गत जो भी कार्य होते हैं, उनकी वर्क डिटेल, बजट ब्रेकअप और तकनीकी स्वीकृति सार्वजनिक करना अनिवार्य माना जाता है।
लेकिन चकिया में डूडा (DUDA) ने मानो सबकुछ दबा देने का निर्णय लिया हो।
पीओ डूडा राजेश उपाध्याय कार्यक्रम में तो दिखे, बयान भी दिया—
“50% धनराशि जारी हो चुकी है, शेष कार्यों के बाद मिलेगी।”
पर बड़ी बात पर एक शब्द नहीं बोले—
किस काम की कितनी लागत है?
जनता को जानने का हक है, पर डूडा चुप।
अधिकारियों की चुप्पी ने ही सवाल खड़े कर दिए।
शिलान्यास समारोह की चमक के बीच छिपा ‘बजट ब्लैकआउट’
समारोह मंच पर नेताओं की बातें भरोसा दिला रही थीं—
“चकिया बदलेगा, विकसित होगा, आदर्श नगर बनेगा।”
पर शिलापट्ट पर बजट का एक शब्द भी नहीं लिखना
बिलकुल वैसा था जैसे—
थाली में खाना रखो, लेकिन ढक्कन हटाने ही न दो।
लोगों ने मौके पर ही कहा—
“शिलान्यास में डेढ़ करोड़ बताया जा रहा है, तो कम से कम हर काम की राशि क्यों नहीं?”
चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव का साफ बयान, पर डूडा का ‘कान पकड़कर गायब होना’
चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव ने कहा—
“नगर में चहुमुखी विकास के लिए कई प्रस्ताव तैयार हैं। पारदर्शिता हमारी प्राथमिकता है।”
चेयरमैन के इस बयान के बाद यह सवाल और बड़ा हो जाता है कि
अगर पारदर्शिता प्राथमिकता है तो डूडा ने शिलापट्टों पर बजट क्यों नहीं दर्ज किया?
यह चेयरमैन की नहीं, पूरी तरह डूडा की गलती कही जा रही है, क्योंकि शिलापट्ट तैयार करने की जिम्मेदारी विभाग की होती है।
जनता की सीधी मांग: ‘काम की लागत बताए बिना शिलान्यास का मतलब क्या?’
स्थानीय लोगों ने कार्यक्रम के बाद खुलकर कहा—
“सड़क बनेगी या नाली—ये तो पता चल गया, लेकिन कितने में बनेगी? क्या रेट है? किस मद से आए पैसे? यह सब गायब है। इतना बड़ा प्रोजेक्ट, और पारदर्शिता जीरो!”
कई ने कहा कि अगर सबकुछ सही है तो जानकारी छिपाने की जरूरत क्यों?
जनता समझदार है, सवाल भी करेगी।
सोशल मीडिया पर ‘बजट का सच बताओ’ अभियान शुरू
शाम होते-होते सोशल मीडिया पर चकिया से कई पोस्ट होने लगीं—
#ShilapatParRakamLikho
#ChakiaFundsTransparency
#DUDA_Answer
लोगों का सवाल बहुत सीधा है—
“डेढ़ करोड़ के नाम पर ताली बजवाना आसान है, लेकिन हर काम की लागत सार्वजनिक करो।”
डूडा का सबसे बड़ा सवाल: ‘अनुमोदन पत्र में जो लिखा है, शिलापट्ट पर क्यों नहीं लिखा?’
सूत्र बताते हैं कि जिन नौ कार्यों की तकनीकी स्वीकृति आई है, उनमें हर कार्य का बजट अलग-अलग है।
तो जब विभाग के पास पूरी जानकारी है—
शिलापट्ट पर दिखाने में परहेज क्यों?
क्या डर है?
क्या छुपाया जा रहा है?
या फिर लापरवाही?
जवाब चाहे जो हो,
जिम्मेदारी डूडा की बनती है, और इस बार जनता सवाल पूछने के मूड में है।
विधायक और चेयरमैन की छवि पर असर?
नेताओं की मंशा पर सवाल नहीं,
लेकिन विभाग की ऐसी लापरवाही से शिलान्यास का चमकदार असर फीका पड़ता है।
विधायक कैलाश आचार्य और चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव की मेहनत और छवि पर भी इसका अनचाहा असर पड़ सकता है।
क्योंकि जनता यही कह रही है—
“नेताओं ने तो काम कराया, पर डूडा ने पारदर्शिता बिगाड़ दी।”
Khabari News की खुली मांग: ‘हर काम की लागत सार्वजनिक हो’
हमारी मांग स्पष्ट है:
- प्रत्येक कार्य का विस्तृत बजट सार्वजनिक किया जाए।
- शिलापट्टों पर राशि का उल्लेख कर पुनः स्थापित किया जाए।
- विभाग यह बताए कि विवरण क्यों छुपाया गया।
- नगर पंचायत और डूडा मिलकर जनता को पूरी सूची उपलब्ध कराएं।
अंत में—चकिया विकास चाहता है, “छुपा-छुपी” नहीं
विकास का सबसे बड़ा आधार है—
पारदर्शिता।
शिलान्यास हुआ, स्वागत योग्य है।
लेकिन जनता के पैसे से काम हो रहे हैं, तो जनता को हर बात का हक भी है।
डेढ़ करोड़ का शिलान्यास,
और शिलापट्ट पर लागत शून्य—
यह खेल जनता नहीं भूलेगी।
अब गेंद डूडा के पाले में है।
देखना यह है कि जवाब आता है या फिर चुप्पी ही नीति बनी रहती है…


