
Bhim Rao Ambedkar
Bhim Rao Ambedkar
चकिया, चंदौली। नगर से सटे डूही-सूही गांव के समीप चकिया रेंज के सपही उत्तरी बीट में उस समय तनाव का माहौल उत्पन्न हो गया जब आरक्षित वन भूमि पर स्थापित की गई संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को वन विभाग ने हटवा दिया। यह घटना दलित समुदाय में व्यापक आक्रोश का कारण बन गई है। अंबेडकर जयंती के अवसर पर 14 अप्रैल की रात को ग्राम प्रधान पति सुनील सिंह और उनके समर्थकों द्वारा यह प्रतिमा स्थापित की गई थी, लेकिन दो दिन के भीतर ही यानी 16 अप्रैल को प्रशासन ने इसे हटवा दिया।
घटनाक्रम का पूरा ब्यौरा
पूरा मामला सपही जंगल के पौधशाला क्षेत्र का है जो कि वन विभाग के आरक्षित क्षेत्र में आता है। 14 अप्रैल की रात करीब 10:30 बजे ग्राम प्रधान पति सुनील सिंह और उनके सहयोगीयो ने एक चबूतरे का निर्माण कर अंबेडकर जी की एक छोटी प्रतिमा को वहां स्थापित कर दिया। प्रतिमा की स्थापना के लिए न तो वन विभाग से अनुमति ली गई थी और न ही स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना दी गई थी। ग्रामीणों के अनुसार, यह पहल अंबेडकर जयंती के सम्मान में की गई थी और गांव के दलित समुदाय ने इसका स्वागत भी किया।
वन विभाग की प्रतिक्रिया
मामले की जानकारी जैसे ही चकिया रेंजर अश्वनी कुमार चौबे को मिली, उन्होंने तत्काल वन दरोगा रामअशीष के नेतृत्व में एक टीम को भेजा। टीम जब मौके पर पहुंची और प्रतिमा को हटाने का प्रयास करने लगी तो ग्राम प्रधान और उनके सहयोगियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। मामला धीरे-धीरे कहासुनी और फिर हाथापाई की स्थिति में पहुंच गया। स्थिति को बिगड़ते देख वनकर्मियों ने तत्काल पुलिस को सूचना दी, जिस पर पीआरबी और चकिया थाना पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रित किया।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
पुलिस ने हालात की गंभीरता को देखते हुए दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास किया। थाना प्रभारी अतुल प्रजापति ने बताया कि यह भूमि आरक्षित वन क्षेत्र में आती है और यहां किसी भी प्रकार का स्थायी निर्माण या प्रतिमा स्थापना नियमों के खिलाफ है। उन्होंने ग्राम प्रधान सुनील सिंह को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि प्रतिमा स्वेच्छा से नहीं हटाई गई, तो उनके खिलाफ विधिक कार्यवाही की जाएगी।

दलित समुदाय की नाराजगी
प्रतिमा हटाए जाने के बाद दलित समाज में भारी नाराजगी देखी जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि बाबा साहब की जयंती पर स्थापित की गई प्रतिमा को इस प्रकार हटाना उनके सम्मान का अपमान है। लोगों ने सवाल उठाए कि यदि प्रतिमा हटानी ही थी तो अनुमति न लेने की स्थिति में प्रशासन ने पहले से रोक क्यों नहीं लगाई? क्या यह दलित समाज की भावनाओं को आहत करने की नियोजित कोशिश थी?
स्थानीय लोगो ने कहा, “हमने सम्मान में मूर्ति स्थापित की, न कि किसी राजनीतिक मकसद से। लेकिन दो दिन बाद ही बाबा साहब की मूर्ति हटाना हमें ठेस पहुंचाता है। हम इसका विरोध करेंगे।”
एक अन्य ग्रामीण महिला ने भावुक होकर कहा, “हमारे बच्चों को हमने बाबा साहब के आदर्शों पर चलना सिखाया है। अगर उनके नाम पर लगाए गए चबूतरे और मूर्ति को यूं हटाया जाएगा तो बच्चों में क्या संदेश जाएगा?”
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प्रशासन की दलील
चकिया रेंजर अश्वनी कुमार चौबे ने स्पष्ट रूप से कहा कि गांव के मुहाने पर जिला पंचायत द्वारा बनाए गए टिन शेड में बाबा साहब की पहले से ही एक आदमकद प्रतिमा स्थापित है। ऐसे में उसी गांव के आरक्षित वन भूमि में एक और प्रतिमा लगाना नियमों के खिलाफ है और इससे जंगल की भूमि पर अतिक्रमण को बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने कहा, “वन क्षेत्र की जमीन पर कोई स्थायी निर्माण नहीं हो सकता। यह न केवल अवैध है, बल्कि इससे पर्यावरणीय संतुलन पर भी असर पड़ता है। इसके बावजूद यदि किसी को बाबा साहब के सम्मान में कुछ करना ही है तो पंचायत और शासन से अनुमति लेकर वैकल्पिक स्थान चुना जा सकता है।”
राजनीतिक पहलुओं पर उठे सवाल
इस घटना ने स्थानीय राजनीति को भी गर्मा दिया है। विरोधी पक्ष के कुछ जनप्रतिनिधियों ने इसे ग्राम प्रधान द्वारा चुनावी लाभ लेने की चाल करार दिया है। उनका कहना है कि प्रतिमा स्थापित करने का यह निर्णय जन भावनाओं से अधिक एक राजनीतिक स्टंट था, ताकि आगामी ग्राम पंचायत चुनावों में दलित समुदाय का समर्थन प्राप्त किया जा सके।
सांप्रदायिक सौहार्द्र की चिंता
घटना के बाद गांव और आसपास के क्षेत्रों में तनाव का माहौल है। हालांकि अब तक किसी प्रकार की हिंसा की सूचना नहीं है, । चकिया थाना पुलिस और वन विभाग की टीम लगातार क्षेत्र का दौरा कर रही है ताकि किसी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।
थाना प्रभारी अतुल प्रजापति ने अपील की है कि लोग शांति बनाए रखें और प्रशासन के निर्णय का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि कोई भी निर्णय बिना तथ्यों और नियमों के विरुद्ध नहीं लिया गया है।
यह घटना न केवल प्रशासनिक निर्णयों और नियमों की सख्ती को दर्शाती है, बल्कि समाज के भावनात्मक पहलुओं से टकराव का उदाहरण भी है। जहां एक ओर कानून व्यवस्था और वन सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिमा हटाना आवश्यक बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर दलित समाज इसे अपमानजनक मानकर आक्रोशित है।
इस पूरे प्रकरण से यह साफ होता है कि संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले संवाद और समन्वय की आवश्यकता होती है। अगर ग्राम प्रधान और प्रशासन के बीच पूर्व समन्वय होता, तो शायद यह टकराव और नाराजगी की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए शासन को स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ ही स्थानीय जन प्रतिनिधियों को जागरूक करना होगा ताकि वे जनभावनाओं का सम्मान करते हुए कानूनी मर्यादाओं में रहकर कार्य करें।