

गिल्ली अब नहीं रहा…
चार साल का वो नन्हा फूल, जिसने अभी ठीक से उड़ान भी नहीं भरी थी, आज खामोश हो गया।
एक काजू गले में फंसा और पल भर में जिंदगी थम गई।
चंदौली खुर्द गांव के पूर्व प्रधान मनोज कुमार के इकलौते बेटे की मौत ने पूरे गांव को गहरे दुख में डुबो दिया है।
जिस घर में खिलखिलाहट गूंजती थी, वहां अब सिर्फ सन्नाटा है।
मां की ममता, पिता के सपने — सब एक ही पल में बिखर गए।
गिल्ली… तेरा मासूम मुस्कुराता चेहरा कभी नहीं भूला पाएंगे हम।
भगवान से यही प्रार्थना है कि परिवार को इस असीम दुख को सहने की शक्ति दे।
चार साल के मासूम गिल्ली की सांस रुकने से मौत, परिजनों पर टूटा दुखों का पहाड़; पूर्व प्रधान मनोज कुमार के घर मचा कोहराम
खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क
अलीनगर‚चन्दौली।एक मासूम मुस्कान… एक चंचल किलकारी… और चंद मिनटों में सबकुछ खामोश।
चंदौली जिले के अलीनगर थाना क्षेत्र के चंदौली खुर्द गांव से रविवार को जो खबर आई, उसने हर संवेदनशील दिल को झकझोर दिया।
पूर्व प्रधान मनोज कुमार के चार वर्षीय इकलौते बेटे गिल्ली की गले में काजू फंसने से मौत हो गई।
जिस घर में कुछ देर पहले तक बच्चों की हंसी गूंज रही थी, वहां अब मातम पसरा है।
माँ ने दिए थे काजू खाने को लेकिन उसे क्या पता था ……………….
रविवार दोपहर का समय था। घर के आंगन में खेलते हुए गिल्ली को उसकी मां ने कुछ काजू खाने के लिए दिए थे। चंचल गिल्ली ने जैसे ही काजू चबाना शुरू किया, अचानक एक काजू गले में फंस गया।
मासूम घबराने लगा, हाथ-पांव मारने लगा।
परिजनों ने पहले तो इसे सामान्य समझा, पर जब उसकी सांसें अटकने लगीं तो हड़कंप मच गया।


अस्पताल जाने से पहले किस्मत ने सुनाया फैसला
घर के लोग आनन-फानन में गिल्ली को नजदीकी निजी क्लीनिकों में ले गए। डॉक्टरों ने हालात की गंभीरता को देखते हुए बिना देर किए जिला अस्पताल रेफर कर दिया।
लेकिन किस्मत ने पहले ही अपना फैसला सुना दिया था।
जिला अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सकों ने गिल्ली को मृत घोषित कर दिया।
गिल्ली… सिर्फ चार साल का था।
छोटे-छोटे कदमों से पूरे घर में दौड़ लगाता था।
हर चेहरा उसकी मुस्कान देखकर खिल उठता था।
अब वही चेहरा सफेद कपड़े में लिपटा गांव वालों के सामने था।
यह सिर्फ एक मौत नहीं थी, एक परिवार की दुनिया उजड़ गई थी।
पूर्व प्रधान मनोज कुमार की दो बेटियां हैं, लेकिन गिल्ली उनके घर का इकलौता चिराग था।
करीब छह महीने पहले भी गिल्ली एक हादसे का शिकार हो चुका था। सोते समय बिस्तर से गिरने पर उसकी हंसली की हड्डी टूट गई थी। महीनों इलाज चला।
मां-बाप ने लाख दुआओं के साथ उसे संभाला था, लेकिन रविवार को किस्मत के आगे सब बेबस हो गए।
गांव के हर कोने में मातम पसरा है।
महीलाओं की सिसकियां, बुजुर्गों की नम आंखें और बच्चों की खामोशी… हर चीज गवाही दे रही है कि किस कदर गिल्ली की कमी खल रही है।
घर के बाहर बिछी चादर पर बैठी मां अपने लाडले की तस्वीर सीने से चिपकाए बिलख रही हैं।
पिता मनोज कुमार हर आने वाले से बस एक ही सवाल कर रहे हैं, “हमारे गिल्ली ने क्या बिगाड़ा था?”
सूखे मेवे बच्चों को देने से पहले बरते एहतियात – स्वास्थ्य विशेषज्ञ
गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं, “गिल्ली बहुत होशियार और प्यारा बच्चा था। जो भी देखता, उसे गोदी में उठा लेता। उसकी मुस्कान से ही घर-आंगन महकता था।”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, छोटे बच्चों को साबुत काजू, बादाम या अन्य सूखे मेवे बहुत संभलकर देने चाहिए। गले में फंसने का खतरा हमेशा बना रहता है। खासकर जब बच्चा बहुत छोटा हो और निगलने की प्रक्रिया पूरी तरह विकसित न हुई हो।
गिल्ली की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं —
- क्या हम बच्चों को पौष्टिक आहार देते वक्त पर्याप्त सावधानी बरतते हैं?
- क्या घरों में प्राथमिक चिकित्सा के लिए जरूरी जागरूकता है?
“चार साल की जिंदगी… एक काजू ने छीन ली। गिल्ली, तुम्हारी मुस्कान हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। भगवान तुम्हें अपने आंचल में जगह दे। 🕊️💔
अब गिल्ली तो वापस नहीं आ सकता, लेकिन उसकी असमय मौत ने यह जरूर सिखाया है कि छोटे-छोटे लम्हों में भी बड़ी सतर्कता की जरूरत होती है।
गिल्ली… तुझे भुला पाना मुश्किल होगा।
तेरी मासूमियत, तेरी किलकारी, तेरा मुस्कुराता चेहरा हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेगा।

