अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर इतिहास गढ़ने वाला सबसे बड़ा कार्यक्रम

खबरी न्यूज नेशनल नेटवर्क चकिया‚चन्दौली।
एक साधारण-सा गांव, लेकिन इंसानियत का असाधारण उदाहरण।
आज यहां जो हुआ, वह सिर्फ एक आयोजन नहीं था—यह एक आंदोलन था।
एक आवाज़, एक संकल्प, एक ठोस चेतना—जिसने पूरे इलाके को हिला दिया।
सुबह की पहली किरण जैसे ही बेन तियरी की मिट्टी पर पड़ी, गांव पहले से ही तैयार था।
मां सरस्वती के तेल-चित्र के सामने वैदिक मंत्रोच्चार से शुरुआत हुई।
मंत्र पढ़ते ब्राह्मण, वातावरण में गूंजती ऊर्जा, और पीछे से आती बछिया की मधुर सरस्वती वंदना—यह सिर्फ कार्यक्रम नहीं, एक आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ था।
दीपक का गायन वातावरण को ऐसा छू रहा था जैसे किसी नए युग का स्वागत हो रहा हो।

मंच संभालते हैं—K. C. Srivastava (Adv.)
खबरी न्यूज़ के डायरेक्टर, Media Trust of India के सचिव, तेज आवाज़, सटीक शब्द और प्रभावशाली उपस्थिति।
उन्होंने कोई औपचारिक शुरुआत नहीं की, बल्कि सीधे दिल पर चोट की—
“मानवाधिकार किताबों की लाइनें नहीं, समाज का ज़मीर हैं।
अगर हम चुप हुए—तो मानवता खुद हमसे सवाल पूछेगी।”
भीड़ सन्न हो गई।
उसके बाद उन्होंने जो शपथ दिलाई—वह सिर्फ शब्द नहीं, एक जीवन का संकल्प था।
“हम अन्याय नहीं सहेंगे,
हम किसी पर अत्याचार नहीं होने देंगे,
हम समानता के लिए खड़े रहेंगे,
हम इंसानियत को अपना पहला धर्म मानेंगे।”
यह शपथ जैसे ही पूरी हुई—पूरा पंडाल गूंज उठा।
लोगों की आंखों में चमक थी, दिलों में जोश था।
बेन तियरी के आसमान ने मानो भीड़ की आवाज़ को अपने भीतर सहेज लिया था।
उन्होने कहा कि “मानवाधिकार जागरूकता तभी सशक्त रूप लेती है जब इसे समाज की जमीनी हकीकत से जोड़ा जाए। इसी सोच के साथ Media Trust of India और Khabari News ने S.I.R. (Special Intensive Revision) अभियान को मानवाधिकार शिक्षा से जोड़ने का संकल्प लिया। हमने जिले के कई महाविद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों को जागरूक किया, उनसे संवाद किया और मानवाधिकारों की वास्तविक परिभाषा समझाई। SVEEP के सहयोग से नुक्कड़ सभाएं भी की गईं, जहाँ मतदान जागरूकता से लेकर सामाजिक अधिकारों तक हर मुद्दे पर चर्चा हुई। मेरा मानना है कि जब युवा, समाज और मीडिया एकसाथ खड़े होते हैं, तभी मानवाधिकार की आवाज़ सबसे बुलंद होती है।”


अध्यक्षता संभालते हैं—बृक्ष बंधु डॉ. परशुराम सिंह
भारतीय मानवाधिकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय किसान सचिव, किसानों की आवाज़, प्रकृति के प्रहरी और समाज के प्रेरणास्रोत।
उनका वर्जन पूरे कार्यक्रम की आत्मा बन गया।
“मानवाधिकार खेतों से शुरू होता है।
जहां पसीना बहता है, वहीं इंसानियत की जड़ें मजबूत होती हैं।
जब तक गांव के आखिरी व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता—हमारी लड़ाई खत्म नहीं होगी।”
उनके शब्दों में धरती की सुगंध थी।
भीड़ ने उन्हें सिर्फ सुना नहीं—महसूस किया।

फिर मंच पर आती हैं—माता श्री डॉ. गीता शुक्ला
उनकी मौजूदगी ने कार्यक्रम को मातृत्व का आशीर्वाद दिया।
उनकी आवाज़ में करुणा और दृढ़ता दोनों थीं।
“मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।
अगर हम आज खड़े नहीं हुए—तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी।”
भीड़ शांत हो गई।
यह शांति गहरी थी, जो हृदय में उतर जाती है।

अमित कुमार उपाध्याय (प्रदेश प्रभारी)
“मानवाधिकार किसी एक दिन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि लगातार चलने वाला जनआंदोलन है। हमारा लक्ष्य है कि उत्तर प्रदेश का हर नागरिक बिना भय, भेदभाव और अन्याय के जी सके। हम संगठन के माध्यम से जागरूकता, न्याय और मानव सम्मान की लड़ाई को और तेज करेंगे।”

मुख्य अतिथि—रवि सिंह पटेल भारतीय मानवाधिकार के राष्ट्रीय संगठन सचिव
ऊर्जा, दृष्टि और सच्चाई—तीनों का संगम।
उन्होंने समाज के सामने कठोर सवाल रख दिया—
“समानता संविधान का वादा है,
फिर असमानता समाज तक कैसे पहुंचती है?
यह दोष किसका है?
सिस्टम का… या हमारी चुप्पी का?”
सवाल ने भीड़ को भीतर तक हिला दिया।
लोगों ने आंखें झुकाईं… फिर उठाईं।
अब भीड़ सिर्फ दर्शक नहीं—सहभागी बन चुकी थी।

प्रदेश महिला प्रभारी — सारिका दूबे
उनकी आवाज़ में संघर्ष भी था और समाधान भी।
“मानवाधिकार तब तक अधूरा है जब तक हर महिला सुरक्षित नहीं,
सम्मानित नहीं,
और बराबरी पर खड़ी नहीं होती।
आज बेन तियरी ने वह अलख जगा दी है, जिसे अब कोई बुझा नहीं सकता।”
तालियों की गर्जना बता रही थी—महिलाओं की आवाज़ आज मुख्यधारा में खड़ी थी।

प्रदेश प्रभारी — आयुष पाठक
युवा नेतृत्व की सबसे तेज़ आवाज़।
उनका एक ही संदेश—
“युवा अगर उठ जाए, तो अन्याय कहीं टिक नहीं सकता।
हमारी चुप्पी सबसे खतरनाक है—
आज से यह चुप्पी टूट चुकी है।”
उनका यह संदेश युवा वर्ग में बिजली की तरह दौड़ गया।
प्रदेश संगठन सचिव — रामप्रकाश जायसवाल
शांत लेकिन गहरी बात कहने वाले नेता।
“संवेदना के बिना मानवाधिकार जीवित नहीं रह सकता।
और संवेदना गांव से, मिट्टी से, आप सबसे जन्म लेती है।”
जिला अध्यक्ष — मिथिलेश पांडे
पूरे कार्यक्रम की रीढ़।
व्यवस्था, स्वागत, अनुशासन—सब कुछ उन्होंने ऊंचे स्तर पर संभाला।
उनका बयान—
“यह सिर्फ संगठन का कार्यक्रम नहीं, जिम्मेदारी का दिन है। आज बेन तियरी ने नई दिशा दी है।”
भीड़ में मौजूद— नागा बाबा प्रेम गिरि और बड़ी संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ता
उनकी उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा कई गुना बढ़ा दी।



फिर आया सस्पेंस का सबसे बड़ा क्षण…
लोग सोच रहे थे कार्यक्रम बस खत्म होने वाला है।
तभी घोषणा हुई—
“अब होगा प्रमाणपत्र वितरण और कंबल वितरण।”
मानो भीड़ की धड़कन रुक गई।
कंबल…
लेकिन सिर्फ एक वस्तु नहीं—
यह सर्द रातों में किसी के जीवन की गर्माहट थी।
प्रमाणपत्र…
लेकिन सिर्फ कागज नहीं—
मानवता की जिम्मेदारी का प्रतीक था।
जिस-जिस के हाथ में गया, उसके चेहरे पर गर्व की रोशनी छा गई।
…… यह अंत नहीं, शुरुआत है
K. C. Srivastava (Adv.) फिर माइक पर आए।
“यह कार्यक्रम समाप्त नहीं, आज से आपकी जिम्मेदारी शुरू हुई है।
आपने जो शपथ ली है—वही आपकी असली पहचान होगी।”
भीड़ फिर एक बार गरज उठी—
“मानवाधिकार अमर रहे… इंसानियत जिंदाबाद…”
आज बेन तियरी ने यह साबित कर दिया—
कि जब जनता जागती है, तो बदलाव कोई विकल्प नहीं—अनिवार्यता बन जाता है।
यह सिर्फ रिपोर्ट नहीं—
यह एक क्रांति की शुरुआत है।
Khabari News
आओ #भी
अब आवाज़ सिर्फ हमारी नहीं—पूरे समाज की है।


