✍️ रिपोर्ट: खबरी न्यूज डेस्क चकिया ‚चन्दौली।
विशेष सहयोग एवं संपादन मार्गदर्शन: के.सी. श्रीवास्तव (एडवोकेट), एडिटर-इन-चीफ, खबरी न्यूज
चकिया की धरती… दोपहर की हल्की धूप… तहसील परिसर में काले कोटों की भीड़…
आँखों में सवाल, चेहरे पर उम्मीद और दिल में एक ही टीस —
“क्या कभी अधिवक्ताओं की पीड़ा भी सुनी जाएगी?”
यही वह पल था, जब बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश चुनाव के बीच चकिया में एक अलग ही माहौल बना। यह कोई सामान्य चुनावी दौरा नहीं था, यह विश्वास और वादों का इम्तिहान था।


इसी माहौल में मंच पर खड़े थे —
श्रीनाथ त्रिपाठी वरिष्ठ अधिवक्ता,
सदस्य — बार काउंसिल ऑफ इंडिया
सदस्य — बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश
और सामने बैठे थे —
संघर्षरत कनिष्ठ अधिवक्ता, अनुभव से झुके वरिष्ठ अधिवक्ता,
और एक पूरा सिस्टम जो बदलाव की बाट जोह रहा था।
“वकालत की पहली सीढ़ी सबसे कठिन होती है”
श्रीनाथ त्रिपाठी का स्वर भारी था, लेकिन शब्द सीधे दिल में उतर रहे थे।
उन्होंने कहा —
“कनिष्ठ अधिवक्ता सिर्फ केस नहीं लड़ता, वह अपने भविष्य से लड़ता है।
बिना संसाधन, बिना सहयोग, सिर्फ काले कोट के भरोसे…”
यही वह सच्चाई है, जिसे अक्सर फाइलों के नीचे दबा दिया जाता है।
खबरी न्यूज की ग्राउंड टीम ने देखा —
चकिया के कई युवा अधिवक्ता ऐसे हैं, जो
- चैंबर का किराया नहीं निकाल पाते
- केस मिलने तक घर से पैसे मंगाते हैं
- कई बार वकालत छोड़ने का मन बना लेते हैं
इसी दर्द को आवाज़ देते हुए श्रीनाथ त्रिपाठी ने खुलकर कहा —

“₹5000 प्रतिमाह स्टाइपेंड — यह मांग नहीं, जरूरत है”
उन्होंने बताया कि
कनिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए ₹5000 प्रतिमाह स्टाइपेंड की मांग सरकार के समक्ष लगातार रखी जा रही है।
यह सिर्फ रकम नहीं है,
यह सम्मान, संरक्षण और संघर्ष को सहारा देने की पहल है।
70 की उम्र, अनुभव का पहाड़… और जेब में खालीपन
खबर यहीं नहीं रुकती।
श्रीनाथ त्रिपाठी ने उस वर्ग की भी बात की, जो अक्सर मंचों से दूर रह जाता है —
वरिष्ठ अधिवक्ता।
उन्होंने कहा —
“जिसने पूरी उम्र न्याय व्यवस्था को दी,
क्या वह बुढ़ापे में उपेक्षा का हकदार है?”
चकिया में मौजूद कई ऐसे अधिवक्ता थे,
जिनकी उम्र 70 पार कर चुकी है,
लेकिन आज भी अदालत की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं।

₹15000 पेंशन की मांग — सम्मान की लड़ाई
श्रीनाथ त्रिपाठी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि
70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए ₹15000 प्रतिमाह पेंशन
की मांग सरकार के सामने मजबूती से रखी जा रही है।
यह कोई राजनीतिक नारा नहीं,
यह न्याय के सिपाहियों के लिए सामाजिक सुरक्षा की मांग है।
“यह चुनाव पद का नहीं, पहचान का है”
अपने संपर्क अभियान के दौरान श्रीनाथ त्रिपाठी ने एक-एक अधिवक्ता से हाथ मिलाया, आँखों में आँखें डालकर बात की।
उन्होंने अपील की —
“प्रथम वरीयता का मत दीजिए”
लेकिन यह अपील डर या दबाव की नहीं थी, यह अपील भरोसे की थी।
उन्होंने कहा —
“मैं चुनाव के समय नहीं, हर पल आपके साथ रहूंगा।”
यही लाइन थी, जिस पर तालियों की गूंज देर तक सुनाई देती रही।
चकिया बना गवाह — जब वकील एकजुट होते हैं
खबरी न्यूज ने देखा —
इस संपर्क अभियान में बड़ी संख्या में अधिवक्ता मौजूद थे।
कोई युवा था, जो भविष्य पूछ रहा था,
कोई बुजुर्ग था, जो सम्मान चाहता था,
और कोई मझोला अधिवक्ता था, जो सिस्टम में सुधार चाहता था।
चकिया में यह सिर्फ एक सभा नहीं थी,
यह अधिवक्ता समाज का आत्ममंथन था।
खबरी न्यूज विश्लेषण | क्यों अहम है यह चुनाव?
बार काउंसिल का चुनाव
केवल प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया नहीं है।
यह तय करता है —
- अधिवक्ताओं की आवाज़ कौन उठाएगा
- सरकार के सामने कौन डटेगा
- और न्याय व्यवस्था के भीतर कौन संतुलन बनाएगा
श्रीनाथ त्रिपाठी का दावा है कि
उन्होंने हमेशा नीति, नैतिकता और निर्भीकता के साथ काम किया है।
“हम हर पल साथ हैं” — एक वाक्य, हजार मायने
सभा के अंत में
जब श्रीनाथ त्रिपाठी ने कहा —
“हम हर पल आपके साथ मौजूद रहेंगे”
तो यह सिर्फ भाषण नहीं था,
यह उस भरोसे की नींव थी,
जिसकी तलाश हर अधिवक्ता करता है।
खबरी न्यूज की कलम से…
चकिया की इस दोपहर ने यह साफ कर दिया कि
अगर वकालत को बचाना है,
तो अधिवक्ताओं को भी अपने हक़ के लिए खड़ा होना होगा।
और जब कोई प्रतिनिधि
उनके दर्द को शब्द देता है,
तो वह सिर्फ उम्मीदवार नहीं रहता —
वह आवाज़ बन जाता है।
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(यह रिपोर्ट खबरी न्यूज की ग्राउंड टीम द्वारा चकिया से तैयार की गई है।)


