
Dr Bhimrao Ambedkar
Dr Bhimrao Ambedkar को 134वीं जयंती पर शत-शत नमन- Ambedkar Grand Tribute to the Torchbearer of Justice and Equality
सम्पादकीय कालम अंबेडकर जयंती पर विशेष
खबरी न्यूज़ नेशनल नेटवर्क
Ambedkar Lives in Every Fight for Justice
हमारा इतिहास न मिटाया जा सकता है, न दबाया जा सकता है, जब तक अंबेडकर की मशाल जलती रहेगी।”
14 अप्रैल 1891 का दिन केवल एक जन्मतिथि नहीं है, यह भारत में सामाजिक क्रांति की शुरुआत का दिन है। इसी दिन जन्मे थे वह महामानव, जिन्होंने भारत को न्याय, समानता और स्वतंत्रता की राह पर चलने का सपना दिखाया। वह थे – बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर।
ज्ञान: वह दीपक जिससे अंधेरा मिटा
एक ऐसा नाम जो न केवल संविधान का निर्माता है, बल्कि दलित चेतना, मानवाधिकार, और सामाजिक न्याय का प्रतीक है। एक ऐसा युगदृष्टा जिसने अपने विचारों और संघर्षों से भारत की आत्मा को झकझोर दिया।
साहेब ने अपने जीवन में सबसे अधिक महत्व शिक्षा को दिया। उनका मानना था कि “शिक्षा वह शस्त्र है जिससे समाज को बदला जा सकता है।”
आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवार से आने के बावजूद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (यूके) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
यह दिखाता है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो जाति, गरीबी, और भेदभाव की दीवारें भी टूट सकती हैं।
आज के युवाओं को बाबा साहेब से यह सीख लेनी चाहिए कि शिक्षा ही असली बदलाव की कुंजी है।
संविधान: सिर्फ कानून नहीं, एक क्रांति
भारत के संविधान के प्रमुख शिल्पकार के रूप में डॉ. अंबेडकर ने एक ऐसा दस्तावेज़ तैयार किया जो हर व्यक्ति को बराबरी का दर्जा देता है।
उन्होंने ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में संविधान को सामाजिक न्याय की नींव पर खड़ा किया।
अनुसूचित जातियों, जनजातियों, महिलाओं, श्रमिकों—सभी को विशेष अधिकार मिले।
उन्होंने मौलिक अधिकार, आरक्षण, और समान अवसरों की व्यवस्था की ताकि सदियों से वंचित लोग बराबरी से खड़े हो सकें।
आज भारत का लोकतंत्र अगर जीवंत है, तो उसका श्रेय बहुत हद तक बाबा साहेब के दूरदर्शी संविधान को जाता है।

जातिवाद के खिलाफ जंग: आत्मसम्मान की आवाज
बाबा साहेब ने कभी भी जातीय भेदभाव को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इसके खिलाफ खुली चुनौती दी।
महाड़ सत्याग्रह, चवदार तालाब आंदोलन, और नासिक के कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन जैसे ऐतिहासिक संघर्षों में उन्होंने नेतृत्व किया।
उनके नेतृत्व में दलितों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और सामाजिक बहिष्कार का मुकाबला किया।
उन्होंने कहा था, “मैं ऐसे धर्म को मानने के लिए तैयार नहीं हूँ जो मानवता को नीचा दिखाए।”
उनकी ये भावना आज भी हमें सिखाती है कि चुप रहना अन्याय को बढ़ावा देना है।
राजनीतिक क्रांति: बहुजन की आवाज
डॉ. अंबेडकर ने समझा कि केवल सामाजिक और शैक्षिक सुधार से क्रांति संभव नहीं, राजनीतिक अधिकार भी ज़रूरी हैं।
उन्होंने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन, और बाद में रेपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जैसी पार्टियों की स्थापना की।
उनका लक्ष्य था—वंचित वर्गों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व और शक्ति देना।
आज जब हम ‘दलित राजनीति’ की बात करते हैं, तो उसकी नींव बाबा साहेब ने ही रखी थी।
आर्थिक दृष्टिकोण: भारतीय रिजर्व बैंक का सपना
कम लोग जानते हैं कि डॉ. अंबेडकर एक प्रतिभाशाली अर्थशास्त्री भी थे।
उन्होंने “रुपए की समस्या” पर शोध किया और भारत की मौद्रिक नीति पर गहरा प्रभाव डाला।
उनकी सिफारिशों के आधार पर ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना की गई।
उनका आर्थिक दृष्टिकोण गरीबों, श्रमिकों और किसानों के हित में था—जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
श्रमिकों और महिलाओं की आवाज
डॉ. अंबेडकर पहले ऐसे मंत्री थे जिन्होंने श्रमिकों और महिलाओं के लिए ऐतिहासिक कानून बनाए।
8 घंटे का कार्यदिवस, मातृत्व लाभ, और न्यूनतम वेतन जैसी व्यवस्थाएँ उन्होंने लागू कीं।
महिलाओं के अधिकारों पर उनका दृष्टिकोण बेहद प्रगतिशील था।
उनका मानना था कि अगर महिला शिक्षित और सशक्त है, तो समाज अपने आप बदल जाएगा।
बौद्ध धर्म: आत्मसम्मान और मुक्ति की राह
1956 में, डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म की जातीय व्यवस्था को त्यागकर बौद्ध धर्म को अपनाया। उनके साथ लाखों लोगों ने भी धर्मांतरण किया।
उन्होंने नवयान बौद्ध धर्म की स्थापना की, जो सामाजिक न्याय और मानवता पर आधारित था।
यह केवल धार्मिक परिवर्तन नहीं था, यह मानव मुक्ति का आंदोलन था।
आज भी हर साल लाखों लोग “दीक्षा भूमि” जाकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि देते हैं।
विश्वव्यापी पहचान: ग्लोबल आइकन
डॉ. अंबेडकर की ख्याति भारत तक सीमित नहीं रही।
संयुक्त राष्ट्र, ऑक्सफोर्ड, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने उन्हें मानवाधिकारों के सबसे बड़े योद्धाओं में स्थान दिया है।
उनके विचार और दर्शन आज अमेरिका, यूके, जापान, साउथ अफ्रीका जैसे देशों में भी पढ़ाए जाते हैं।
वह न केवल भारत के बल्कि पूरे विश्व के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं।
आज के दौर में बाबा साहेब की प्रासंगिकता
2025 में खड़े होकर जब हम पीछे देखते हैं तो बाबा साहेब की सोच और भी जरूरी लगती है:
जब संविधान पर सवाल उठते हैं,
जब जाति के नाम पर नफरत फैलती है,
जब लोकतंत्र कमजोर होता है—
तब बाबा साहेब की विचारधारा एक प्रकाश स्तंभ बन जाती है।
The Man Who Wrote Our Rights
बाबा साहेब का सबसे बड़ा संदेश था:
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो”
(“Educate, Organize, Agitate”)
यह संदेश आज के युवाओं के लिए एक एक्शन प्लान है। अगर हम बदलाव चाहते हैं, तो हमें पढ़ना होगा, संगठित होना होगा, और अन्याय के खिलाफ खड़े होना होगा।
अंबेडकर, एक विचार एकआंदोलन
बाबा साहेब का जीवन सिर्फ इतिहास नहीं, वह एक चेतना है, एक जीवित आंदोलन है।
जब-जब कोई बच्चा स्कूल जाता है,
जब-जब कोई दलित गर्व से सिर उठाता है,
जब-जब कोई महिला अपने अधिकारों के लिए खड़ी होती है—
वहाँ बाबा साहेब मौजूद होते हैं।
उनकी मशाल जलती रहेगी, जब तक इस धरती पर एक भी अन्याय बाकी है।


- The Voice That Changed a Nation
- Dr. Ambedkar: The Light of Justice and Equality
- From Oppression to Constitution: The Journey of Babasaheb
- A Visionary Who Saw Beyond His Time
- Babasaheb: More Than a Name, A Revolution
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- He Didn’t Just Dream Equality—He Wrote It Into Law
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- The Blueprint of a Just Nation: Dr. B.R. Ambedkar
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