
caste census
नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में होने वाली अगली जनगणना में caste census को शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह फैसला बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। सरकार का यह कदम न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में अहम माना जा रहा है, बल्कि इससे देश की राजनीति में भी नई बहस शुरू हो गई है।
कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत में अब व्यापक स्तर पर caste census कराया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने हमेशा इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल किया है, जबकि मोदी सरकार इसे पारदर्शिता और समावेशिता की दिशा में उठा रही है।
caste census का क्या है मतलब?
Caste census का तात्पर्य है—देश के नागरिकों की जातिगत पहचान और सामाजिक स्थिति का आधिकारिक डेटा तैयार करना। अब तक भारतीय जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी दर्ज की जाती रही है, लेकिन अब यह दायरा बढ़ाकर सभी जातियों को शामिल किया जाएगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पिछली बार कब हुआ था caste census?
भारत में अंतिम बार संपूर्ण caste census वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था। इसके बाद से यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से विवादित रहा। 2010 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इसे लेकर गंभीरता दिखाई, लेकिन तब भी इसे जनगणना का हिस्सा नहीं बनाया गया।
मोदी सरकार की मंशा
सरकार का कहना है कि caste census कराने का उद्देश्य समाज के प्रत्येक वर्ग की सही सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझना है। इससे योजनाओं का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचेगा। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस निर्णय से आरक्षण नीति, सामाजिक स्कीम्स और संसाधनों के वितरण में बेहतर पारदर्शिता आएगी।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में होने वाली अगली जनगणना में caste census को शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह फैसला बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। सरकार का यह कदम न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में अहम माना जा रहा है, बल्कि इससे देश की राजनीति में भी नई बहस शुरू हो गई है।
कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत में अब व्यापक स्तर पर caste census कराया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने हमेशा इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल किया है, जबकि मोदी सरकार इसे पारदर्शिता और समावेशिता की दिशा में उठा रही है।
caste census का क्या है मतलब?
Caste census का तात्पर्य है—देश के नागरिकों की जातिगत पहचान और सामाजिक स्थिति का आधिकारिक डेटा तैयार करना। अब तक भारतीय जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी दर्ज की जाती रही है, लेकिन अब यह दायरा बढ़ाकर सभी जातियों को शामिल किया जाएगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पिछली बार कब हुआ था caste census?
भारत में अंतिम बार संपूर्ण caste census वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था। इसके बाद से यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से विवादित रहा। 2010 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इसे लेकर गंभीरता दिखाई, लेकिन तब भी इसे जनगणना का हिस्सा नहीं बनाया गया।
मोदी सरकार की मंशा
सरकार का कहना है कि caste census कराने का उद्देश्य समाज के प्रत्येक वर्ग की सही सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझना है। इससे योजनाओं का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचेगा। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस निर्णय से आरक्षण नीति, सामाजिक स्कीम्स और संसाधनों के वितरण में बेहतर पारदर्शिता आएगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
caste census के फैसले के बाद विपक्ष ने इसे अपनी जीत बताया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि यह जनता की मांग थी जिसे अब जाकर केंद्र सरकार ने माना है। वहीं जेडीयू, आरजेडी, सपा और अन्य दलों ने भी caste census की मांग पर जोर देते हुए सरकार के फैसले का स्वागत किया है।
क्या caste census से बदलेगा आरक्षण का स्वरूप?
caste census के बाद यह संभव है कि ओबीसी वर्गों को मिलने वाले आरक्षण में पुनः संतुलन किया जाए। इससे सामाजिक संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है, क्योंकि सटीक आंकड़े सरकार को बेहतर नीति निर्धारण में सहायता देंगे।
राज्यों की भूमिका
बिहार, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य पहले ही अपने-अपने स्तर पर caste census कर चुके हैं या उसकी तैयारी कर रहे हैं। केंद्र सरकार का यह कदम राज्यों को और अधिक सशक्त बनाने में मदद करेगा, क्योंकि अब आंकड़े केंद्र से ही मिलेंगे।
तकनीकी और संवैधानिक चुनौती
caste census को लागू करना एक बड़ा प्रशासनिक काम होगा। इसमें डेटा गोपनीयता, सामाजिक संवेदनशीलता और संसाधनों की उपलब्धता जैसे कई मुद्दे सामने आ सकते हैं। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसे सही दिशा में लागू किया गया, तो यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
समाजशास्त्रियों और विशेषज्ञों की राय
कई समाजशास्त्रियों का मानना है कि caste census के बिना सरकार की सामाजिक योजनाएं अधूरी रहती हैं। वे कहते हैं कि आज भी सरकार को यह नहीं पता कि कौन सी जाति किस स्थिति में है, जिससे योजनाएं असमान रूप से लागू होती हैं।
क्या caste census से समाज में तनाव बढ़ेगा?
कुछ वर्गों में यह चिंता भी है कि caste census से समाज में जातीय तनाव या ध्रुवीकरण हो सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जब आंकड़े पारदर्शी होंगे और उनके आधार पर योजनाएं बनाई जाएंगी, तो सामाजिक विश्वास भी बढ़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
कई विकसित देशों में भी जातीय या नस्लीय आंकड़े इकट्ठा किए जाते हैं ताकि अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सकें। caste census भारत को भी एक सामाजिक रूप से अधिक उत्तरदायी राष्ट्र बना सकता है।
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मोदी सरकार का caste census को लेकर लिया गया फैसला देश की सामाजिक नीतियों को नई दिशा दे सकता है। यह निर्णय केवल आंकड़ों की गिनती नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समावेशिता और पारदर्शिता की दिशा में एक अहम प्रयास है। यदि इसे ईमानदारी और सही तरीके से लागू किया गया, तो भारत की सामाजिक संरचना में बड़ा बदलाव आ सकता है।