

High Court ने DM-SP को लगाई फटकार!”
खबरी न्यूज़ नेशनल नेटवर्क प्रयागराज।
- DM को नहीं कोर्ट की इज्जत बढ़ाने का लाइसेंस – इलाहाबाद HC का गरजता फैसला”
- बसवा गांव से निकला बवाल, High Court ने पूछा – DM-SP खुद को क्या समझते हैं?”
- Constitution का करंट: कोर्ट बोली – DM-SP भ्रम में न रहें, कानून सबसे ऊपर है!”
- “तालाब की जमीन पर कब्जा और अफसरों का अहंकार – हाईकोर्ट की चाबुक चली!”
- Public Interest से शुरू हुआ मामला, अब बन गया प्रशासनिक गरिमा का इम्तिहान!”
- “क्या डीएम और एसपी भूल गए संविधान का पाठ? हाईकोर्ट ने सुनाई खरी-खरी!”
- “तल्ख जुबान में न्याय: कोर्ट ने कहा – अदालत किसी के भरोसे की मोहताज नहीं!”
- छोटे गांव से उठी आवाज, हाईकोर्ट तक पहुंचा सच – क्लिक करें और पढ़ें Exclusive रिपोर्ट
जब अदालत गरजी, तो प्रशासन की चुप्पी टूटी – जानिए पूरा मामला Khabari News पर!”
“Public Interest से शुरू हुआ मामला, अब बन गया प्रशासनिक गरिमा का इम्तिहान!”
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले से निकलती एक जनहित याचिका ने पूरे प्रशासनिक तंत्र की चूलें हिला दी हैं। जनहित के नाम पर उठी एक आवाज ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ऐसा गूंजता संदेश दिया कि न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की तल्ख टिप्पणियां आज चर्चा का केंद्र बन गई हैं।
मामला है फतेहपुर जनपद के कलपुर मजरे बसवा गांव का। गांव के सरकारी तालाब पर कथित अतिक्रमण और पुलिस प्रशासन द्वारा याचिकाकर्ता पर बनाए जा रहे दबाव को लेकर डॉ. कमलेंद्र नाथ दीक्षित ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। याचिका में साफ आरोप लगाया गया कि ग्राम प्रधान ने सार्वजनिक संपत्ति पर कब्जा कर लिया है और प्रशासन मामले में लीपापोती कर रहा है।
जनहित की आवाज दबाने की कोशिश नहीं चलेगी” –हाईकोर्ट
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने डीएम और ग्राम प्रधान से व्यक्तिगत हलफनामा तलब किया। लेकिन जब डीएम फतेहपुर ने अपना जवाब दाखिल किया, तो कोर्ट उसके शब्दों से असहज हो उठा। विशेष तौर पर हलफनामे के प्रस्तर 17 में लिखा गया था:
“अदालत को हुई असुविधा के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। भविष्य में हमारी या किसी भी अधिकारी की ओर से अदालत की गरिमा को बनाए रखने में कोताही नहीं बरती जाएगी।”
शब्दों के इस चयन ने न्यायमूर्ति मुनीर को झकझोर दिया। कोर्ट ने सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा:
“डीएम इस भ्रम में न रहें कि अदालत की गरिमा को बढ़ाने या घटाने की ताकत उनमें है। यह अदालत किसी अधिकारी के आश्वासन की मोहताज नहीं है, बल्कि कानून और संविधान की रक्षा स्वयं करती है।”
एसपी की भी खिंचाई
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी उजागर किया कि एसपी फतेहपुर द्वारा दिए गए हलफनामे में भी ऐसे ही शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसका मतलब प्रशासनिक मशीनरी में एक खास किस्म की मानसिकता घर कर चुकी है – कि वे कानून से ऊपर हैं या अदालत को समझा सकते हैं कि न्याय कैसे चले।
हमारे शब्द नहीं, हमारी मंशा तय करती है कि हम संविधान के साथ हैं या उसके खिलाफ” –
“
कोर्ट ने इन बयानों को सीधे-सीधे न्यायिक गरिमा को चुनौती देने जैसा माना और डीएम से नया हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा कि उनके खिलाफ क्यों न कार्रवाई की जाए।
कखरेरू थाना प्रभारी पर भी नजर
गांव बसवा से जुड़ा यह मामला सिर्फ डीएम और एसपी तक सीमित नहीं रहा। थाना कखरेरू के प्रभारी को भी अदालत ने सीधे अगली सुनवाई में उपस्थित रहने का आदेश दिया है। यह आदेश किसी छोटी-मोटी चूक का परिणाम नहीं, बल्कि प्रशासनिक जिम्मेदारी की अनदेखी का संकेत है।
ग्रामसभा और ग्राम प्रधान भी लपेटे में
कोर्ट ने ग्राम प्रधान के साथ-साथ ग्रामसभा से जुड़े सभी अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता को छह मई तक सभी शपथपत्रों पर अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है। यानी आने वाला हफ्ता इस केस के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।
Khabari Opinion
यह प्रकरण सिर्फ एक सरकारी तालाब के अतिक्रमण का नहीं है। यह एक चेतावनी है – उन सभी अधिकारियों के लिए जो यह समझते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं। यह एक मिसाल है – उन आम नागरिकों के लिए जो यह मान बैठे हैं कि न्याय अब सिर्फ शक्तिशाली का है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की इस कार्यवाही ने साफ कर दिया कि न्यायपालिका की गरिमा किसी की दया या शब्दों से तय नहीं होती। यह वह संस्थान है जो संविधान की आत्मा को जीता है।
जब डीएम स्तर के अफसर “कोर्ट की असुविधा” जैसे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, तो यह एक संकेत है कि प्रशासनिक प्रशिक्षण में अब संवैधानिक मूल्यों की गहराई से दोबारा पाठ पढ़ाने की जरूरत है।
आखिरी पंक्ति में…
बसवा गांव में एक तालाब पर कब्जे की खबर ने पूरे सिस्टम का आइना दिखा दिया है। अगली सुनवाई 6 मई को है। देशभर की निगाहें अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की दिशा में हैं, जो न सिर्फ एक तालाब को बचा रही है, बल्कि संविधान की नमी को भी।

Silver Bells

