

विषय: पृथ्वी दिवस विशेष | संवाद: डॉ. परशुराम सिंह & के.सी. श्रीवास्तव
🔷 प्रस्तावना: पृथ्वी या प्लास्टिक?
हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला Earth Day केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक सतत चेतना का प्रतीक है – चेतना कि इस धरती को बचाने की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है। वर्ष 2025 की थीम “Planet vs. Plastics” इस बात की ओर इशारा करती है कि अब समय आ गया है जब इंसान को चुनना होगा – सुविधा या भविष्य?
इसी मुद्दे पर Green Warriors से सम्मानित पर्यावरणविद और अमेरिका की University of Chicago से Lifetime Achievement Award से सम्मानित डॉ. परशुराम सिंह से हुई बातचीत में खबरी न्यूज के संपादक के.सी. श्रीवास्तव एड० ने धरती की पीड़ा, प्लास्टिक का प्रभाव और समाधान की राहों पर विस्तृत चर्चा की।

🧑🔬 कौन हैं डॉ. परशुराम सिंह?
डॉ. परशुराम सिंह पिछले तीन दशकों से भारत के कई प्रदेशो में “Eco-Awakening Campaigns” चला चुके हैं। NGO राष्ट्र सृजन व आदर्श जन चेतना समिति के Green Warriors के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण, जल संकट और जैव विविधता संरक्षण पर कार्यरत है। भारत में वे “Eco-Bamboo Villages”, “Plastic-Free Panchayats” और “Eco-Literacy Movement” के सूत्रधार रहे हैं।
🗣️ बातचीत का अंश – सवाल और जवाब
के.सी. श्रीवास्तव (KCS):
सर, Earth Day 2025 की थीम – Planet vs. Plastics – इस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या रही?
डॉ. परशुराम सिंह (DPS):
ये केवल एक थीम नहीं, एक चेतावनी है। प्लास्टिक हमारी नसों में घुल चुका है – Literally! आज नवजात शिशुओं के शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया जा रहा है। हम भोजन से लेकर जल और वायु – हर चीज़ को प्रदूषित कर चुके हैं। अगर अब भी हमने प्लास्टिक के खिलाफ निर्णायक कदम नहीं उठाया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी।
🧪 वैज्ञानिक दृष्टिकोण: प्लास्टिक का प्रभाव
- एक अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 380 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है।
- इनमें से केवल 9% ही रीसायकल हो पाता है, शेष समुद्र, जमीन और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है।
- WHO की 2023 की रिपोर्ट में बताया गया कि शरीर में 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक प्रति सप्ताह पहुंच रहा है – यह लगभग एक क्रेडिट कार्ड जितना है!
डॉ. सिंह के अनुसार –
“यह न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि जैविक अस्तित्व का भी प्रश्न है। ये धीमा ज़हर है।”
🌿 ग्रीन वारियर्स का मिशन
डॉ. परशुराम सिंह जिस संस्था में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व संरक्षक है उस संस्था राष्ट्र सृजन अभियान व आदर्श जन चेतना समिति का मूल मंत्र है –
“Local Action, Global Impact.”
अब तक संस्था द्वारा किए गए प्रमुख कार्य:
- 230+ ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक मुक्त घोषित किया गया।
- Eco-Ambassadors कार्यक्रम के माध्यम से 1 लाख से अधिक बच्चों को प्रशिक्षित किया गया।
- बांस आधारित वैकल्पिक उत्पाद विकसित कर 12000 से अधिक ग्रामीणों को आजीविका दी गई।
📜 इतिहास में झाँकें तो…
पृथ्वी दिवस की शुरुआत 1970 में अमेरिका में हुई, जब 20 मिलियन लोगों ने पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ सड़कों पर मार्च किया। इसके बाद 1990 में यह आंदोलन वैश्विक बन गया।
भारत में 1990 के बाद से कई संगठनों ने इसमें भागीदारी की, लेकिन वास्तविक जन-जागरूकता 2000 के दशक के बाद आई, जब प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ने विकराल रूप धारण किया।
📸 संवाद की झलकियाँ
KCSrivastava.
सर, आज का युवा पर्यावरण के मुद्दों को गंभीरता से ले रहा है। लेकिन “रील बनाओ, पेड़ बचाओ” से आगे कैसे बढ़ें?
Dr.parashuram singh
बहुत सटीक प्रश्न। “Activism can’t be Instagram-only.” हमें स्थायी बदलाव के लिए ground action पर ध्यान देना होगा। हर गांव में ‘Eco Club’, हर स्कूल में ‘Plastic Audit’ और हर घर में ‘कचरा वर्गीकरण’ अनिवार्य हो – तभी सच्चे Earth Warriors तैयार होंगे।
🛠️ समाधान क्या हैं?
डॉ. परशुराम सिंह के 5 सूत्रीय प्लास्टिक विरोधी मॉडल:
- Plastic Audit: हर घर में प्लास्टिक उपयोग का मासिक मूल्यांकन।
- Eco-Alternatives: जैसे – बांस, पत्ते, कपड़ा आधारित पैकेजिंग को बढ़ावा।
- Compost Culture: किचन वेस्ट को खाद में बदलने का स्थानीय तंत्र।
- Plastic Taxation: सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर सख्त टैक्स नीति।
- Eco-Education: स्कूली स्तर से ही पर्यावरण को मुख्यधारा में लाना।
📊 भविष्य की ओर संकेत
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, यदि प्लास्टिक उत्पादन की गति ऐसे ही बनी रही, तो 2040 तक समुद्रों में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगा। डॉ. सिंह की यह चेतावनी बहुत गंभीर है:
“यह केवल पृथ्वी दिवस नहीं, पृथ्वी का निर्णायक दशक है – या तो हम प्लास्टिक छोड़ें, या धरती हमें छोड़ देगी।”
📝खबरी की ओपिनियन
Earth Day 2025 केवल पोस्टर या भाषण तक सीमित न रहे – यह एक जन आंदोलन बने, तभी बदलाव संभव है। डॉ. परशुराम सिंह जैसे व्यक्तित्व न केवल हमें चेताते हैं, बल्कि समाधान की राह भी दिखाते हैं। आज जब पूरी दुनिया ‘प्लैनेट बनाम प्लास्टिक’ के मोड़ पर खड़ी है, तो हमें तय करना है – सुविधा की आदत बची रहे या जीवन की धरती?
📢 खबरी सोशल मीडिया कैप्शन के लिए सुझाव:
🌍 #EarthDay2025 | Planet vs. Plastics
🎙️ Exclusive Talk with Dr. Parshuram Singh (Green Warriors)
🔬 “Plastic is not just pollution – it’s infiltration.”
🧠 Read, Reflect, React – Only @Khabari

